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६६. प्रार्थनापत्र : नेटाल विधान परिषदको[१]

डर्बन
[२६ जून, १८९५ से पूर्व]

सेवामें

माननीय अध्यक्ष तथा सदस्यगण

विधान परिषद

नेटाल उपनिवेशमें व्यापारियोंकी हैसियत से रहनेवाले
निम्न हस्ताक्षरकर्ता भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

प्रार्थी उपनिवेशवासी भारतीय समाजके प्रतिनिधियोंकी हैसियतसे भारतीय प्रवासी कानून संशोधन विधेयकके[२] सम्बन्धमें आपकी सम्माननीय परिषदके सामने यह प्रार्थनापत्र पेश कर रहे हैं। इसका सम्बन्ध विधेयकके उस अंशसे है, जिसका असर गिरमिटकी वर्तमान अवधिपर पड़ता है और जिसके द्वारा गिरमिटकी अवधि पूरी कर लेनेके बाद उपनिवेशमें ठहरनेके इच्छुक भारतीयोंको तीन पौंड सालाना देकर परवाना लेने के लिए बाध्य करनेकी व्यवस्था की गई है।

प्रार्थियोंका सादर निवेदन है कि उपर्युक्त दोनों उपधाराएँ बिलकुल अन्यायपूर्ण और अनावश्यक हैं।

प्रार्थी इस सम्माननीय सदनका ध्यान इस विषयमें भारत भेजे गये प्रतिनिधियों — श्री बिन्स[३] और श्री मेसनकी रिपोर्टके इस अंशकी ओर आकर्षित करते हैं :

अबतक किसी देशको — जिसमें भी कुली गये हैं — गिरमिटकी अवधि फिर नई करनेकी मंजूरी नहीं दी गई है यद्यपि भारत सरकारसे बार-बार अनुरोध किया गया, और न गिरमिटकी अवधि पूरी होनेके बाद उनका लाजिमी तौरपर लौटा दिया जाना ही मंजूर किया गया है।

इस तरह तमाम ब्रिटिश उपनिवेशोंमें इस समय जैसा व्यवहार चलता है उससे विधेयककी उपधाराएँ बिलकुल अलग हैं और बिगाड़की ओर ले जानेवाली हैं।

 
  1. यह प्रार्थनापत्र २६ जून १८९५ के नेटाल मर्क्युरीमें प्रकाशित हुआ था।
  2. विधेयक २५ जूनको नेटाल परिषद में प्रस्तुत किया गया, अगले दिन उसका द्वितीय वाचन करके उसे पारित कर दिया गया था।
  3. सर हेनरी बिन्स (१८३७-९९); १८९७ में नेटालके प्रधान-मन्त्री।