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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको
हमें फायदा पहुँचानेमें कट जाये तब (अगर हम कर सकें तो, मगर कर नहीं सकते) उन्हें अपने देश लौट जानेके लिए बाध्य करें और इस प्रकार उन्हें अपने पुरस्कारका सुख भोगने देने से इनकार कर दें? और आप उन्हें भेजेंगे कहाँ? उन्हें उसी भुखमरीकी परिस्थितिको झेलनेके लिए फिर क्यों वापस भेजा जाये, जिससे अपनी जवानीके दिनोंमें भागकर वे यहाँ आये थे? अगर हम शाइलाकके[१] समान एक पौंड मांस ही चाहते हैं, तो विश्वास रखिए, हमें शाइलाकका ही प्रतिफल भोगना होगा।
आप चाहें तो भारतीयोंका आगमन रोक दें। अगर अभी खाली मकान काफी न हों तो अरबों या भारतीयोंको, जो इस आधेसे कम आबाद देशकी उपज व खपतकी शक्ति बढ़ाते हैं, निकालकर और भी मकान खाली करा लें। परन्तु इस एक विषयको उदाहरण के तौरपर उठाकर जाँचिए, और इसके परिणामोंका पता लगाइए। पता लगाइए कि किस तरह मकानों के खाली पड़े रहनेसे जायदाद और सेक्युरिटीजकी कीमत घटती है और इसके बाद, कैसे गृह-निर्माणका धन्धा तथा अपने मालकी खपत के लिए इस धन्धेपर निर्भर अन्य धन्धे और दुकानें अनिवार्यतः ठप हो जाती हैं। देखिए कि इससे गोरे मिस्तिरियोंकी माँग कैसे कम होती है, और इतने लोगोंकी खर्च करनेकी शक्ति कम हो जानसे कैसे राजस्वमें कमीको अपेक्षा करनी होगी। इसी तरह छँटनीकी या कर बढ़ानेकी या दोनोंकी जरूरत! इस परिणामका और दूसरे परिणामोंका, जो इतने अधिक हैं कि उनका विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं किया जा सकता, मुकाबला कीजिए, और फिर अगर अंधी जाति-भावना या ईर्ष्याको ही प्रबल होने देना है तो होने दीजिए। उपनिवेश भारतीयोंके आगमन को जरूर रोक सकता है, और 'लोकप्रियता के दीवाने' जितना चाहेंगे उससे कहीं अधिक सरलता के साथ और स्थायी रूपमें भी, परन्तु सेवाके अन्तमें उन्हें जबरन निकाल देना उसके वशकी बात नहीं है। और मैं उससे अनुरोध करता हूँ कि इसकी कोशिश करके वह एक अच्छे नामको कलंकित न करे।

(२३) भूतपूर्व विधानपरिषदके भूतपूर्व सदस्य और वर्तमान महान्यायवादी (माननीय श्री एस्कम्ब) ने आयोग के सामने गवाही देते हुए कहा था (पृ° १७७)

जहाँतक अवधि पूरी कर लेनेवाले भारतीयोंका सम्बन्ध है, मैं नहीं समझता कि किसी व्यक्तिको, जबतक वह अपराधी न हो और उस अपराधके लिए उसे देशनिकाला न दिया गया हो, दुनियाके किसी भी भागमें जानेके लिए बाध्य किया
 
  1. शेक्सपियरके नाटक मर्चेंट ऑफ वैनिसका खलनायक। वह, शर्तके अनुसार, कर्जके बदले अपने कर्जदार मित्रके शरीरसे एक पौंड मांस काट लेनेपर अड़ गया था। आखिर अदालत में उससे कहा गया कि वह एक पौंड मांस काट ले, न कम हो न ज्यादा, और न एक बूँद भी खून ही निकले। इस तरह उसे धन और मांस दोनोंसे हाथ धोना पड़ा।