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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको

इकरारको दुहरानेकी और कर-सम्बन्धी उपधाराएँ बिलकुल बेकार हैं, क्योंकि उनसे वांछित परिणाम नहीं होगा। और, यह तो कभी कहा ही नहीं गया कि उसका उद्देश्य आमदनी बढ़ाना है।

( ३३ ) इसलिए प्रार्थी निवेदन करते हैं कि यदि ये उपनिवेश भारतीयोंको बरदाश्त नहीं कर सकते, तो हमारी रायसे, उसका एकमात्र उपाय यह है कि भविष्य में नेटालको मजदूर भेजना बिलकुल बंद कर दिया जाये। कमसे-कम हालमें तो यही हो सकता है। प्रार्थी ऐसी व्यवस्थाका नम्रतापूर्वक परन्तु जोरोंके साथ विरोध करते हैं, जिससे साराका सारा लाभ एक पक्षको और सो भी उस पक्षको मिलता है, जिसे उसकी सबसे कम जरूरत है। इस प्रकार गिरमिटिया भारतीयोंका आना रोक देनेसे भारतकी घनी आबादीके हलकोंपर बहुत बुरा असर नहीं पड़ेगा।

(३४) अबतक प्रार्थियोंने गिरमिट और परवाना दोनोंकी धाराओंकी एक साथ विवेचना की है। जहाँतक परवानेका सम्बन्ध है, हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं कि ट्रान्सवालमें भी — जो एक पराया राज्य है — सरकारने अपनी इच्छा और अपने खर्चसे आनेवाले भारतीयोंपर वार्षिक कर नहीं लगाया। वहाँ सिर्फ एक बार ३ पौंड १० शिलिंगका परवाना ही लेना जरूरी है। इसपर भी, हमें मालूम हुआ है, सम्राज्ञी सरकारको प्रार्थनापत्र[१] तो भेजा ही गया है। इसके अलावा, यहाँका परवाना अत्यन्त अनिष्टकारी ढंगका वार्षिक कर है। इसका अभागा शिकार इसे देनेका सामर्थ्य रखता हो या न रखता हो, उसे देना तो पड़ेगा ही। बहसके समय एक सदस्यने पूछा कि अगर कोई भारतीय इस कर पर आपत्ति करे या इसे न चुकाये तो यह वसूल कैसे किया जायेगा? इसपर माननीय महान्यायवादीने उत्तर दिया कि न देनेवाले भारतीयके घरमें सरसरी कार्रवाईसे कुर्क कर लेनेके लिए हमेशा ही काफी माल मिल जायेगा।

अन्तमें, प्रार्थियोंका निवेदन है कि परवाना सम्बन्धी धाराको पेश करनेसे वाइसरायके उपर्युक्त खरीतेमें निर्धारित मर्यादाका अतिक्रमण होता है।

अतएव, हम व्यग्रतापूर्वक प्रार्थना और दृढ़ आशा करते हैं कि जिन धाराओंकी यहाँ विवेचना की गई है उन्हें सम्राज्ञी-सरकार स्पष्टतः अन्याययुक्त मानेगी, और, इसलिए, उपर्युक्त भारतीय प्रवासी कानून संशोधन विधेयकको अनुमति नहीं देगी। अथवा, वह ऐसी अन्य राहतें प्रदान करेगी, जिनसे न्यायका उद्देश्य पूरा हो।

और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी, कर्त्तव्य समझकर, सदैव दुआ करेंगे, आदि।

अंग्रेजी (एस° एन° ४३३) की फोटो-नकलसे।

 
  1. इसका पाठ उपलब्ध नहीं हुआ।