पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/२९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५३
प्रार्थनापत्र : लॉर्ड एलगिनको

एहतियाती कार्रवाई में पहले से ही यह मान्यता है कि इकरारनामा अन्यायपूर्ण है। इसलिए प्रार्थियोंका निवेदन है कि उसकी मंजूरी प्राप्त करनेके लिए जो कारण दिये गये हैं जिनसे उसे न्यायसंगत ठहराया जा सके वे बिलकुल अपर्याप्त हैं।

जैसा कि साथ नत्थी किये गये पत्रमें संकेत किया गया है, प्रार्थी महानुभावसे विनती करते हैं कि जिन उपधाराओंपर आपत्ति की गई है, उनमें से किसीके लिए अनुमति न दी जाये; बल्कि इसके साथ नत्थी पत्रमें[१] श्री जे° आर° सांडर्स और माननीय श्री एस्कम्बका जो जोरदार मत उद्धृत किया गया है उसके अनुसार नेटालको प्रवासी भेजना बन्द कर दिया जाये।

सम्राज्ञीकी प्रजाके किसी भी अंगको, भले ही वह गरीब से गरीब क्यों न हो, व्यावहारिक रूपमें गुलाम बना लिया जाये, या उसपर कोई विशेष हानिकारक व्यक्ति-कर लादा जाये, ताकि उपनिवेशी जिन लोगों से पहले ही अधिकसे-अधिक लाभ उठा रहे हैं उनसे, किसी प्रकारका बदला चुकाये बिना, और भी अधिक लाभ उठानेकी अपनी सनक या इच्छा पूरी कर सकें — इसका प्रार्थी आदरके साथ विरोध करते हैं। अनिवार्य रूपसे पुनः इकरार कराने या उसके बदले में व्यक्ति कर वसूल करनेके विचार को प्रार्थियोंने सनक कहा है। उनका विश्वास है कि उन्होंने सही शब्दका प्रयोग किया है। क्योंकि, प्रार्थियोंका दृढ़ विश्वास है कि उपनिवेशमें भारतीयोंकी संख्या यदि तिगुनी भी हो जाये तो भी खतरेका कोई कारण उपस्थित न होगा।

परन्तु प्रार्थियोंका नम्र निवेदन है कि ऊपर-जैसे विषयका निर्णय करनेमें उपनिवेश की इच्छा ही महानुभावकी मार्गदर्शिका नहीं हो सकती। उपधाराओंसे प्रभावित होनेवाले भारतीयोंके हितोंका भी खयाल करना जरूरी है। और हमें उचित आदर-पूर्वक यह कहने में कोई पसोपेश नहीं है कि यदि कभी उन उपधाराओंको स्वीकार कर लिया गया तो सम्राज्ञीकी अत्यन्त निस्सहाय भारतीय प्रजाके प्रति एक गम्भीर अन्याय होगा।

हमारा निवेदन है कि पाँच वर्षका इकरारनामा काफी लम्बा होता है। उसे असीम अवधितक बढ़ा देनेका अर्थ होगा कि जो भारतीय व्यक्ति कर देने या भारत लौटने में असमर्थ हो, उसे हमेशा बिना स्वतन्त्रताके, बिना कभी अपनी स्थिति सुधरनेकी आशाके रहना होगा — यहाँतक कि, वह अपनी झोंपड़ी, अपनी तुच्छ आमदनी और अपने फटे-पुराने कपड़े बदलकर ज्यादा अच्छे मकान, तृप्तिकारक भोजन और आदरके योग्य कपड़ोंका विचार भी नहीं कर सकेगा। उसे अपने बच्चोंको अपनी रुचिके अनुसार शिक्षा देने या अपनी पत्नीको आनन्द अथवा मनोरंजनके द्वारा सांत्वना प्रदान करनेका भी विचार नहीं करना होगा। प्रार्थियोंका निवेदन है कि इस जीवनकी अपेक्षा भारतमें स्वतन्त्रताके साथ और अपनी ही हालतके मित्रों तथा सम्बन्धियोंके बीच आधी भुखमरीका जीवन ही कहीं ज्यादा अच्छा और ज्यादा इष्ट होगा। उस हालत में रहते हुए भारतीय अपना जीवन सुधारनेकी आशा कर सकते हैं, और उन्हें उसका मौका भी मिल सकता है। परन्तु यहाँकी हालतोंमें वैसा कभी नहीं हो

 
  1. देखिए पृष्ठ २४६-४७।