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बाईस

विचार करना दक्षिण आफ्रिकी संयुक्त राज्य के सपरिषद गवर्नर-जनरलका विषय बन गया और इस सम्बन्धमें दक्षिण आफ्रिकी सरकारकी नीतिको प्रभावित करनेकी क्षमता ब्रिटिश सरकारमें नहीं रह गई। परन्तु गांधीजी के दक्षिण आफ्रिकामें रहते हुए अधिकांश समय ऐसी स्थिति नहीं थी।

कृषिके विकास और देशकी खनिज सम्पदाका लाभ उठानेके लिए इन उपनिवेशों-के गोरोंको मजदूरोंकी आवश्यकता पड़ी। आफ्रिकी लोगोंको उन्होंने नियमित और भरोसा करने योग्य मजदूर नहीं पाया, क्योंकि वे अपनी भूमिसे जो कुछ मिलता था उसपर निर्वाह करके सन्तुष्ट रहते थे। और इसलिए उनमें से अधिकतर मजदूरीपर काम करनेको उत्सुक नहीं थे। अतएव ब्रिटिश उपनिवेशियोंने भारतके अंग्रेज शासकोंके साथ मिलकर भारतीय मजदूरोंको गिरमिट-प्रथा अथवा इकरारनामेके आधारपर दक्षिण आफ्रिकामें लानेका प्रबन्ध किया। इस तरहके मजदूरोंका पहला जत्था सन् १८६० में दक्षिण आफ्रिका पहुँचा। इन मजदूरोंको अधिकार था कि इकरारनामेकी अवधि समाप्त हो जानेपर वे चाहें तो भारत लौट जायें, या दक्षिण आफ्रिकामें ही रहकर पाँच वर्षकी दूसरी अवधिके लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो जायें, अथवा सरकार वहीं उन्हें वापसी-किराये के मूल्यकी भूमि दे दे और वे उसपर स्वतन्त्र नागरिकोंकी हैसियत से बस जायें।

आम तौरपर ये मजदूर भारतके सबसे गरीब वर्गोंके लोग थे। इनको आरोग्य के नियमोंके अनुसार रहने की आदतें नहीं सिखाई गई थीं और ये अनेक दृष्टियों से पिछड़े हुए थे। इनके बाद, बहुत जल्दी ही, इनकी जरूरतोंको पूरा करनेके लिए भारतीय व्यापारी भी आ पहुँचे। यही दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय आबादीका आरम्भ था।

इस प्रकारके और मजदूरोंको भेजनेका इकरारनामा फिरसे नया करनेके पहले १८६९ में भारत सरकारने साफ-साफ शर्तें कर ली थीं कि इकरारनामेकी अवधि के बाद मजदूरोंको बराबरीका दर्जा दिया जाये, उन्हें देशके सामान्य कानूनके अनुसार रखा जाये और उनके साथ कोई कानूनी या प्रशासनिक भेद-भाव न बरता जाये। नेटाल सरकारने, जिसने ऐसे मजदूरों की माँग की थी, इन शर्तोंको स्वीकार किया था और बादमें, लंदन-स्थित ब्रिटिश सरकारने भी १८७५ में इनकी पुष्टि कर दी थी। इसके अलावा, ब्रिटिश महारानीने अपनी १८५८ की घोषणा के द्वारा 'हमारे भारतीय साम्राज्यके निवासियों' को उन्हीं अधिकारोंका आश्वासन दिया था, जो 'हमारी अन्य सब प्रजाओंको' प्राप्त हैं।

तथापि डच लोग भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकामें रहने देनेके सदा विरोधी रहे। वे चाहते थे कि एशियाई मजदूरोंको (चीनियों समेत) एक निश्चित अवधिके लिए लाया जाये और उसके बाद तुरन्त वापस भेज दिया जाये। उनकी इच्छा थी कि उनके उपनिवेश सिर्फ गोरोंके लिए रहें, जिनमें आफ्रिकी लोग अपने लिए अलग निश्चित किये गये क्षेत्रोंमें निवास करें।

अंग्रेजोंकी भी यही इच्छा थी। दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे यूरोपीय व्यापारियोंके समान ही, भारतीयोंको कृषि और व्यापार, दोनोंमें उन्होंने अपना जबर्दस्त प्रतियोगी