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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकता। हमारा विश्वास है कि मजदूरोंके प्रवासको प्रोत्साहित करनेका उद्देश्य यह कभी नहीं था।

इसलिए, आखिर में प्रार्थी उत्कटतासे निवेदन तथा दृढ़ आशा करते हैं कि यदि उपनिवेश उपर्युक्त आपत्तिजनक व्यवस्थाके स्वीकार हुए बिना भारतीय मजदूरोंको नहीं चाहता, तो महानुभाव भविष्य में नेटालको मजदूर भेजना बन्द कर देंगे, या दूसरी ऐसी राहतें देंगे, जो न्यायपूर्ण मालूम हों।

और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए आपके प्रार्थी, कर्त्तव्य समझकर, सदैव दुआ करेंगे, आदि।[१]

अब्दुल करीम हाजी आदम

तथा अन्य

अंग्रेजी (एस° एन° ४३२) की फोटो-नकलसे।

 

६९. नेटाल भारतीय कांग्रेसका कार्य-विवरण

अगस्त, १८९५

स्थापना

१८९४ के जून महीने में नेटाल सरकारने विधानसभा में एक विधेयक पेश किया था, जिसका नाम मताधिकार कानून संशोधन विधेयक था। विधेयकके बारेमें ऐसा माना गया कि इससे तो उपनिवेशवासी भारतीयोंका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इसलिए उसे मंजूर न होने देनेके लिए क्या कार्रवाईकी जाये, इस विषयपर विचार करनेके लिए दादा अब्दुल्ला ऐंड कम्पनीके मकान में सभाएँ की गई। दोनों सदनोंको प्रार्थनापत्र भेजे गये और एक प्रतिनिधिने डर्बनसे पीटरमैरित्सबर्ग जाकर दोनों सदनोंके सदस्योंसे मुलाकातें कीं। तथापि विधेयक दोनों सदनोंमें स्वीकार हो गया। इस सम्बन्धमें जो आन्दोलन हुआ, उसके परिणामस्वरूप सभी भारतीयोंको एक ऐसी स्थायी संस्था बनानेकी आवश्यकता महसूस हुई, जो भारतीयोंके सम्बन्ध में उपनिवेशकी पहली उत्तरदायी सरकारकी प्रतिगामी वैधानिक प्रवृत्तियोंका मुकाबला और भारतीयोंके हितोंकी रक्षा करे।

 
  1. प्रार्थना निष्फल रही। नये प्रवासी कानून संशोधन विधेयक में व्यवस्थित प्रवासो-संरक्षककी शक्तियों और कार्योंके बारेमें भारत सरकार द्वारा प्रकट किये गये हल्के से विरोधको अनदेखा कर दिया गया। उपनिवेश मन्त्रीने वाइसरायको लिखा कि विधेयकको सम्राटको अनुमति मिलनेके पूर्व नेटालसे मिले प्रार्थनापत्रोंको देखते हुए वे विधेयकपर पुनर्विचार करें। पर लॉर्ड एलगिन अपने पहले मतपर ही कायम रहे। (देखिए अर्ली फेज, पृष्ठ ५२१-२) १८ अगस्तको विधेयकको शाही मंजूरी दे दी गई और वह कानून बन गया।