और 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंका सक्रिय समर्थन किया है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसकी ब्रिटिश कमेटी बहुत सावधान हो गई है। सर डब्ल्यू° डब्ल्यू° इंटर, श्री ए° वेब,[१] माननीय फीरोजशाह मेहता, माननीय फजलभाई विसराम तथा अन्य व्यक्तियोंके पाससे सहानुभूतिके पत्र प्राप्त हुए हैं। अन्य भारतीय और ब्रिटिश पत्रोंने भी हमारी शिकायतोंको सहानुभूतिसे देखा है।
श्री ऐस्क्यू कांग्रेसकी बैठकोंमें शामिल होनेवाले एकमात्र यूरोपीय रहे हैं। जनताके सामने कांग्रेसकी स्थापनाकी अबतक आधिकारिक रूपसे घोषणा नहीं की गई है, क्योंकि जबतक उसके स्थायी रूपसे चलनेका विश्वास न हो जाये तबतक घोषणा न करना ही उचित समझा गया। उसने बहुत खामोशीसे काम किया है।
भूतपूर्व अध्यक्ष श्री अब्दुल्ला हाजी आदमकी भारत-विदाईपर उन्हें एक मानपत्र दिया गया था। यह उचित ही होगा कि कांग्रेसके कार्यके इस सिंहावलोकनकी परि- समाप्ति उसके उल्लेखके साथ की जाये।
कांग्रेसको भेंटें
भेंटें नाना प्रकारकी और बहुत-सी प्राप्त हुई। भेंटें देनेवालोंमें श्री पारसी रुस्तमजी अग्रगण्य हैं। उन्होंने कांग्रेसको तीन बत्तियाँ, एक मेजपोश, एक घड़ी, एक पर्दा, एक कलमदान, कलमें स्याहीसोख तथा एक फूलदान प्रदान किये। वे सारे वर्ष तेल भी पुराते रहे। हर बैठकके दिन वे सभा भवनको झाड़ने बुहारने और उसमें दिया-बत्ती करनेके लिए अपने आदमियोंको भेजते रहे हैं, और यह काम समयकी असाधारण पाबन्दीके साथ किया गया। उन्होंने कांग्रेसको ४,००० परिपत्र भी दिये। श्री अब्दुल कादिरने अपने खर्चसे सदस्य सूची छपवा दी।
श्री सी० एम० जीवाने २,००० परिपत्र मुफ्त छपवा कर दिये। इनके लिए कागज कुछ तो श्री हाजी मुहम्मदने और कुछ श्री हुसेन कासिमने दिया।
श्री अब्दुल्ला हाजी आदमने एक शतरंजी और श्री मानेकजीने एक मेज भेंट की।
श्री प्रागजी भीमभाईने १,००० लिफाफे दिये।
अवैतनिक मन्त्रीने नियमावलीको अंग्रेजी और गुजरातीमें भारत से छपवाकर मँगाया और सामान्य पाक्षिक परिपत्रोंके लिए कागज, टिकट आदि दिये।
श्री लॉरेन्स, जो कांग्रेस के सदस्य नहीं हैं, चुपचाप किन्तु बड़े उत्साह के साथ परिपत्र बाँटनेका काम करते रहे हैं।
विविध
सभाओंमें उपस्थिति बहुत ही कम रही और समयकी पाबन्दीकी जैसी उपेक्षा की गई वह दुःखकी बात थी। तमिल सदस्योंने कांग्रेसके कार्यमें ज्यादा उत्साह नहीं
- ↑ अल्फ्रेड वेव : संसद-सदस्य। इंडिया और अन्य पत्रिकाओंमें दक्षिण आफ्रिका के भारतीयोंकी समस्याओं के बारेमें बहुधा लेख लिखते रहते थे; कांग्रेसके मद्रास अधिवेशन (१८९४) के अध्यक्ष और ब्रिटिश कमेटी के सदस्य थे।