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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जर्मनों और फ्रांसीसियोंके बारेमें भी आपको आपत्ति करनी चाहिए। इस सिद्धान्तके अनुसार तो, पहले-पहल यहाँ आकर अपना खून बहानेवाले अगुओंके वंशज इंग्लैंडसे आकर उन्हें खदेड़नेवाले लोगोंके बारेमें भी आपत्ति उठा सकते हैं। क्या यह एक संकीर्ण और स्वार्थपूर्ण दृष्टि नहीं है? कभी-कभी आपके अग्रलेखोंमें बहुत ऊँची और भूतदयायुक्त भावनाओंकी अभिव्यक्ति मिलती है। दुर्भाग्यवश, जब आप भारतीयोंके प्रश्नपर लिखते हैं तब ये भावनाएँ एक ओर रख दी जाती हैं। और फिर भी तथ्य तो यह है कि भारतीय आपके बन्धु-प्रजाजन तो हैं ही चाहे आप इस चीजको पसन्द करें या न करें। इंग्लैंड नहीं चाहता कि भारतपर उसका प्रभुत्व समाप्त हो जाये, और साथ ही वह उसपर कठोरताके साथ शासन भी करना नहीं चाहता। उसके राजनीतिज्ञोंका कहना है कि वे ब्रिटिश शासनको भारतमें इतना अधिक लोकप्रिय बना देना चाहते हैं कि फिर भारतीय किसी दूसरे शासनको पसन्द ही न करें। तब क्या जैसे विचार आपने व्यक्त किये हैं, उनसे उन इच्छाओंकी पूर्ति में बाधा नहीं पड़ेगी?

मैं ऐसे बहुत कम भारतीयोंको जानता हूँ जो चाहे कमाते एक हजार पौंड हों, परन्तु रहते इस तरह हों मानो सिर्फ पचास पौंड ही कमाते हों। सच बात तो यह है कि उपनिवेशमें शायद कोई भी भारतीय ऐसा नहीं है जो अकेले प्रतिवर्ष एक हजार पौंड कमाता हो। कुछ लोग ऐसे हैं जिनके व्यापारको देखकर कल्पना की जा सकती है कि वे 'ढेर-का-ढेर धन कमाते होंगे।' उनमें से कुछका व्यापार सचमुच बहुत बड़ा है, परन्तु मुनाफा वैसा नहीं है; क्योंकि उसमें हिस्सेदारी कई लोगोंकी है। भारतीयोंको व्यापार पसन्द है, और अगर वे इतना कमा लेते हैं जिससे वे भली-भाँति जीवन व्यतीत कर सकें तो उन्हें अपने मुनाफेमें दूसरोंको बड़े-बड़े हिस्से देने में बुरा नहीं लगता। वे सबसे ज्यादा स्वयं ले लेनेका आग्रह नहीं रखते। यूरोपीयोंके समान ही उनको भी अपना पैसा खर्च करनेका शौक होता है। इतना जरूर है कि वे उनकी तरह अँधाधुंध खर्च नहीं करते। बम्बई में जिन व्यापारियोंने भी भारी सम्पत्ति इकट्ठी की है, उन्होंने अपने लिए महल बनवा लिये हैं। मोम्बासाकी एकमात्र विशाल इमारत एक भारतीयकी बनाई हुई है। जंजीबारमें भारतीय व्यापारियोंने खूब धन कमाया है, फलतः उन्होंने वहाँ अनेक महल खड़े किये हैं, और कुछने तो रंगमहल मी बनाये हैं। अगर डर्बन या दक्षिण आफ्रिकामें किसी भारतीयने ऐसा नहीं किया तो इसका कारण यह है कि उन्होंने इसके लायक काफी पैसा नहीं कमाया है। महोदय, यदि आप थोड़ी और बारीकीसे इस प्रश्नका अध्ययन करें तो, ऐसा कहनेके लिए क्षमा करेंगे, आपको मालूम हो जायेगा कि भारतीय इस उपनिवेशमें भरसक खर्च करते हैं — वे सिर्फ इतनी सावधानी रखते हैं कि कहीं अधिक संकटमें न पड़ जायें। यह कहना कि जो लोग अच्छी कमाई करते हैं वे अपनी दुकानोंके फर्शपर सोते हैं, मैं कहूँगा, गलत है। अगर आप भ्रममें रहना न चाहते हों और कुछ घंटोंके लिए अपनी सम्पादकीय कुर्सी छोड़नेके लिए तैयार हों तो मैं आपको कुछ भारतीय दुकानोंमें ले चलूँगा। तब शायद आप उनके बारेमें इतनी कठोरताके साथ विचार न करेंगे।