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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैंने यह दावा कभी नहीं किया — और न अब करता हूँ — कि मताधिकार भारतमें उतना ही व्यापक है जितना यहाँ है। यह कहना भी व्यर्थ होगा कि भारतकी विधान परिषदें उतनी ही प्रातिनिधिक हैं, जितनी कि यहाँकी विधानसभा है। तथापि, जिस बात का मैं दावा करता हूँ वह यह है कि भारतमें मताधिकारकी मर्यादाएँ कुछ भी हों, वह बिना रंग-भेदके सबको प्राप्त है। इस बातका प्रतिवाद नहीं किया जा सकता कि प्रातिनिधिक शासनको समझनेकी भारतीयोंकी योग्यता स्वीकारकी जा चुकी है। श्री फ्रांसिसका कथन है कि मताधिकारकी योग्यता भारतमें वही नहीं मानी जाती जो नेटालमें मानी जाती है। इस बातसे तो कभी इनकार किया ही नहीं गया है। इस तरहकी कसौटीके अनुसार तो यूरोपसे आनेवाले लोगोंको भी मताधिकार नहीं मिल सकेगा, क्योंकि विभिन्न यूरोपीय राज्यों में मताधिकारकी योग्यता ठीक वही नहीं है जो यहाँ है।

इस सप्ताहकी डाकसे इस बातका सबसे ताजा प्रमाण प्राप्त हुआ है, कि भारतीय इस विषयकी एकमात्र सच्ची कसौटी पर, जो यह है कि वे प्रतिनिधित्वका सिद्धान्त समझते हैं या नहीं, कभी कम नहीं उतरे हैं। मैं 'टाइम्स' में प्रकाशित 'भारतीय मामले' शीर्षक लेखसे निम्नलिखित उद्धरण दे रहा हूँ :

परन्तु जिन भारतीय सैनिकोंने कीर्ति कमाई है, उनकी वीरता अगर हमारे अन्दर इस बातका अभिमान जगाती है कि हमारे बन्धु-प्रजाजन ऐसे हैं . . . सचमुच उस भयानक घाटीमें उन्होंने अपने साथियों के प्रति जिस भव्य आत्मत्यागका परिचय दिया था, उससे बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता . . . सच तो यह है कि भारतीय योग्य सह-प्रजाजन माने जानेका अधिकार अनेक तरीकोंसे अर्जित कर रहे हैं। समर-भूमि सदा ही विभिन्न जातियोंके बीच सम्मान पूर्ण समानता स्थापित करनेका सरल साधन रही है; परन्तु भारतीय तो इससे कहीं अधिक मन्द और कठिन तरीकोंसें, अर्थात् नागरिकोंकी हैसियतसे अपने समुचित आचरणके द्वारा भी हमारा सम्मान प्राप्त करनेका अपना अधिकार सिद्ध कर रहे हैं। तीन वर्ष पूर्व आंशिक निर्वाचनके आधारपर भारतीय विधान परिषद के विस्तारका जो प्रयोग किया गया था, उससे बड़ा प्रयोग अधीन राज्योंके वैधानिक शासनमें पहले कभी नहीं हुआ था। . . . अनेक चर्चाएँ बहुत मददगार रही हैं। और जहाँतक बंगालका उस प्रान्तका सम्बन्ध है, जहाँ निर्वाचन-पद्धति सबसे अधिक कठिनाइयोंसे भरी मालूम होती थी, वहाँ भी एक कड़ी कसौटीके बाद यह प्रयोग सफल सिद्ध हुआ है।

जैसा कि सभीको मालूम है, यह अनुच्छेद एक ऐसे इतिहासज्ञ[१] और भारतके अफसरकी कलम से निकला है, जिसने भारतमें तीस वर्षसे अधिक सेवा की है। कुछ लोगोंको मताधिकार न दिया जाना अपने आपमें बड़ी निरर्थक चीज मालूम हो सकती

 
  1. सर विलियम विल्सन हंटर।