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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फैसला अबतक नहीं हुआ है। जिन परिस्थितियोंमें कांग्रेसको इस मामलेमें शामिल किया गया है उनपर अगर मैं कुछ कहूँ तो अदालतकी मानहानि करनेकी जोखिम उठानेका डर है। इसलिए जबतक मामलेका फैसला नहीं होता, तबतक मैं अपने विचार प्रकट न करनेके लिए विवश हूँ।

मगर फिलहाल, आपके आक्षेपोंसे लोगोंके मनमें जो भी गलत छाप पड़ सकती हो, उसे मिटानेके लिए, आपकी अनुमतिसे, मैं कांग्रेसके ध्येय स्पष्ट कर दूँ। उसके ध्येय ये हैं :

"(१) उपनिवेशमें रहनेवाले भारतीयों और यूरोपीयोंके बीच एक-दूसरेको ज्यादा अच्छी तरह समझनेका माद्दा पैदा करना और मैत्रीभाव बढ़ाना।

"(२) समाचारपत्रोंमें लिखकर, पुस्तिकाएँ प्रकाशित करके और व्याख्यानों आदिके द्वारा भारत और भारतीयोंके बारेमें जानकारी फैलाना।

"(३) भारतीयोंको, खासकर उपनिवेशमें जन्मे भारतीयोंको, भारतीय इतिहासकी शिक्षा और भारतीय विषयोंका अध्ययन करनेकी प्रेरणा देना।

"(४) भारतीयोंके विभिन्न दुखड़ोंकी जाँच-पड़ताल करना और उन्हें दूर करनेके लिए तमाम वैध उपायोंसे आन्दोलन करना।

"(५) गिरमिटिया भारतीयोंकी हालतकी जाँच करना और उनको विशेष कठिनाइयोंसे निकलने में मदद करना।

"(६) गरीबों और जरूरतमन्दोंकी सब उचित तरीकोंसे मदद करना।

"(७) और आम तौरपर वे सब प्रयत्न करना, जिनसे भारतीयोंकी नैतिक, सामाजिक, बौद्धिक और राजनीतिक स्थितिमें सुधार हो।"

स्वयं कांग्रेसका विधान ऐसा है कि वह व्यक्तिगत शिकायतोंमें तबतक हस्तक्षेप करनेसे रोकता है, जब तक कि उनका महत्त्व सार्वजनिक न हो।

"भारतीय कांग्रेसके अस्तित्वका पता चला, सो केवल एक आकस्मिक संयोग ही था" — यह कहना ज्ञात तथ्योंके अनुकूल नहीं है। जबकि कांग्रेसका गठन हो रहा था, तभी 'नेटाल विटनेस' ने उस हकीकतकी घोषणा कर दी थी, और, अगर मैं गलती नहीं कर रहा होऊँ तो, कांग्रेसकी स्थापना सम्बन्धी अंशकी नकल आपने भी छापी थी। यह सच है कि पहले इसकी विधिवत् घोषणा नहीं की गई थी। इसका कारण यह था कि संगठनकर्ताओंको उसके स्थायित्वका विश्वास नहीं था, और न अभी है। उन्होंने इसमें बुद्धिमत्ता समझी कि समयको ही उसे जनताकी निगाह में लाने दिया जाये। उसे गुप्त रखनेके कोई प्रयत्न नहीं किये गये। उलटे, उसके संगठनकर्ताओंने उन यूरोपीयोंको भी, जिन्हें कांग्रेसके प्रति सहानुभूति रखनेवाले समझा जाता था, उसमें शामिल होने या उसकी पाक्षिक बैठकोंमें हिस्सा लेनेके लिए


कहा गया था कि कांग्रेस गांधीजीके नेतृत्व में सरकारसे लड़नेका षडयंत्र रच रही है, उसने भारतीय मजदूरोंको अपने कष्टों के विरुद्ध आन्दोलन करनेके लिए उभादा है, गांधीजी उनसे और भारतीय व्यापारियोंसे राहत दिलानेके वादे करके रुपया ऐंठते हैं और उसका उपयोग अपने मतलबके लिए करते हैं। देखिए “ पत्र: उपनिवेश सचिवको ", २१-१०-१८९५ भी।