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७५. पत्र : 'नेटाल मर्क्युरी' को[१]

डर्बन
३० सितम्बर, १८९५

सेवामें
सम्पादक
'नेटाल मर्क्युरी'

महोदय,

आपके शनिवारके अंकमें प्रकाशित 'एच' का पत्र अगर केवल मुझसे सम्बन्ध रखता होता, तो मैंने उसकी कोई परवाह न की होती। परन्तु उसके पत्रका सरकारी कर्मचारियोंसे सम्बन्ध है, इसलिए मैं फिरसे आपके सौजन्यका लाभ उठानेको विवश हुआ हूँ। मैं कांग्रेसका वेतन भोगी मन्त्री नहीं हूँ। उलटे, दूसरे सदस्योंके साथ-साथ मैं भी उसके कोषके लिए अपना तुच्छ योग-दान करता हूँ। कांग्रेसकी ओरसे मुझे कोई कुछ नहीं देता। कुछ भारतीय, वकीलके रूपमें उन्हें मेरी सेवाएँ उपलब्ध रहें, इसके लिए मुझे वार्षिक शुल्क अवश्य देते हैं। यह शुल्क मुझे प्रत्यक्ष रूपसे दिया जाता है। कांग्रेसके पास छिपानेके लिए कुछ नहीं है। सिर्फ वह अपना गुणगान करती नहीं फिरती। उसके बारेमें जो भी पूछताछ की जाये, चाहे वह खानगी हो या सार्वजनिक, उसका उत्तर यथासम्भव तत्परताके साथ दिया जायेगा। मैं इसके साथ कांग्रेस-सम्बन्धी कुछ कागजात भेज रहा हूँ। उनसे उसके कार्यपर कुछ प्रकाश पड़ेगा।

आपका,

मो° क° गांधी
अवैतनिक मन्त्री
ने° भा° कां°

[अंग्रेजी से]
नेटाल मर्क्युरी, ४-१०-१८९५

 
  1. 'एच' ने नेटाल मर्क्युरोमें २८ सितम्बर, १८९५ को फिरसे एक पत्र छपवाया था। उसमें कहा गया था कि कांग्रेस संगठनको नियमावली भारतीय दुभाषियेने ही तैयार की है। सम्राज्ञीको प्रार्थनापत्र पेश कराने में उसका हाथ है और गांधीजीको उसके मन्त्रीका काम करनेके लिए ३०० पौंड वार्षिक वेतन दिया जाता है।