महत्त्वाकांक्षा नहीं दिखाई। और नेटालमें भी चाहे उनकी संख्या ४०,०००के बदले चार लाख क्यों न हो जाये, उनकी यह महत्त्वाकांक्षा दिखानेकी सम्भावना नहीं है।
आपका,
मो° क° गांधी
[अंग्रेजीसे]
नेटाल एडवर्टाइजर, १०-१०-१८९५
७७. पत्र : उपनिवेश सचिवको[१]
डर्बन
२१ अक्तूबर, १८९५
सेवामें
माननीय उपनिवेश-सचिव
पीटरमै रित्सबर्ग
महोदय,
समाचारपत्रों में छपी कुछ बातों[२] और सम्राज्ञी बनाम रंगस्वामी पदयाचीके हालके मुकदमे में डर्बनके आवासी न्यायाधीशके निर्णयके कारण कांग्रेसके अवैतनिक मन्त्रीकी हैसियत से इन विषयों पर आपको लिखना मेरे लिए जरुरी हो गया है।
फैसले में कहा गया है कि अगस्तमें किसी एक दिन कांग्रेसने असगर नामके एक भारतीयको अपने सामने बुलाया और उसे धमकी देकर एक मुकदमेमें गवाही देनेसे रोकनेका प्रयत्न किया। उसमें यह भी कहा गया है कि कांग्रेस षड्यन्त्रकारी संघ है, आदि।
मेरा निवेदन है कि कांग्रेसने उपर्युक्त व्यक्ति या किसी भी दूसरे व्यक्तिको गवाही देनेसे रोकनेके लिए कभी अपने सामने नहीं बुलाया। इतना ही नहीं, मेरा निवेदन यह भी है कि मजिस्ट्रेटके पास ऐसे आक्षेप करनेका कोई आधार नहीं था।
जिस फैसले में ये आक्षेप किये गये हैं, वह अदालत में पुनर्विचाराधीन है। इस स्थितिके कारण मैं अखबारोंमें इसकी विस्तृत चर्चा नहीं कर पा रहा हूँ। दुर्भाग्य- वश मजिस्ट्रेटने ये आक्षेप गैररस्मी तौरपर किये हैं। इसलिए हो सकता है कि इनपर न्यायाधीश पूरी तरह विचार न करें। गवाह असगरके बयान, उससे जिरह और दुबारा जिरहके दौरान कांग्रेसका कहीं जिक्र भी नहीं आया था। दुबारा जिरह हो जाने पर मजिस्ट्रेटने उससे कांग्रेसके बारेमें सवाल पूछे। सवाल-जवाबसे साफ हो गया