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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

था कि जिस सप्ताह धमकी दी गई, ऐसा माना जाता है, उस सप्ताह कांग्रेसकी कोई बैठक नहीं हुई थी। मुकदमेमें दो छपे हुए परिपत्र पेश किये गये थे। एक पर १४ अगस्त और दूसरेपर १२ सितम्बरकी तारीखें थीं। इन दोनों परिपत्रों द्वारा कांग्रेस सदस्योंको इन तारीखोंके बादके मंगलवारोंकी, अर्थात् २० अगस्त और १७ सितम्बरकी बैठकोंमें आनेके लिए आमन्त्रित किया गया था।

कहा गया है, धमकी १२ अगस्तको दी गई थी। फिर यह भी कहा गया है। कि उस दिन गवाहको कमरुद्दीनने मूसाके दफ्तरमें बुलवाया था, जहाँ एम० सी० कमरुद्दीन, दादा अब्दुल्ला, दाऊद मुहम्मद और दो-तीन अजनबी हाजिर थे, और वहाँ उससे मुकदमेके बारेमें कुछ सवाल पूछे गये थे । मगर गवाहने इस आशयकी गवाही दी कि कांग्रेसकी बैठकें मूसाके दफ्तरमें नहीं होतीं, उसे मूसाके दफ्तर में बैठकमें आनेका परिपत्र नहीं मिला, वह परिपत्रके अनुसार हुई बैठकोंमें शामिल नहीं हुआ, कांग्रेसकी बैठकें कांग्रेस भवनमें होती हैं, मुकदमेके साथ परिपत्रका कोई सम्बन्ध नहीं था और वह कांग्रेसकी जो सभाएँ वास्तवमें हुईं उनमें हाजिर नहीं था। लेकिन इसके बावजूद मजिस्ट्रेटने इस बातको कांग्रेसके साथ जोड़ दिया है।

मजिस्ट्रेट के निष्कर्षकी पुष्टि सिर्फ एक ही मुद्देसे हो सकती थी। और वह मुद्दा यह है कि जिन छ: या सात व्यक्तियोंको मूसाके दफ्तरमें हाजिर बताया गया था, उनमें से तीन कांग्रेसके सदस्य हैं।

गवाही के इस विषय से सम्बन्ध रखनेवाले अंशोंके उद्धरण मैं इसके साथ नत्थी कर रहा हूँ।

मैं निवेदन करता हूँ कि मजिस्ट्रेटके मनमें किसी-न-किसी प्रकारका विपरीत प्रभाव मौजूद था। पुन्नूस्वामी पाथेर तथा तीन अन्य लोगोंके मुकदमेमें रंचमात्र साक्षी न होने पर भी उसने अपने निर्णयके कारणोंमें कहा है कि प्रतिवादी कांग्रेसके सदस्य हैं और कांग्रेस उन्हें बल देती है। सच तो यह है कि वे सब कांग्रेसके सदस्य नहीं हैं और न कांग्रेसका इस मामले से कोई सरोकार ही है । रंगस्वामीके मामले में मैंने श्री मिलरको हिदायतें दीं, इसका बड़ा तूल बाँधा गया है। मैं बता दूँ कि पुन्नूस्वामी तथा अन्योंके मामलेसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है। जबतक यह मामला बहुत बढ़ नहीं गया, तबतक मुझे पता भी नहीं था कि ऐसा कोई मामला है भी। मेरे हस्तक्षेपकी माँग तब की गई थी जब कि रंगस्वामीपर दूसरी बार वही अभियोग लगाया गया। और तब भी मुझे कांग्रेसके अवैतनिक मन्त्रीकी हैसियतसे नहीं, बैरिस्टर की हैसियतसे याद किया गया था।

मैं सरकारको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि कांग्रेसके संगठनकर्ताओंका इरादा कांग्रेसको उपनिवेशके दोनों समाजोंके लिए उपयोगी और भारतीयोंसे सम्बन्ध रखनेवाले मामलोंमें उनकी भावनाओंको वाणी देनेवाली और, इस प्रकार वर्तमान सरकारको मदद करनेवाली संस्था बनाना है। यदि कांग्रेस सरकारको परेशानी में डाल भी सकती हो, तो भी संगठनकर्ताओंका इरादा उसे ऐसी संस्था बनानेका नहीं है।

ऐसे विचार रखने के कारण स्वाभाविक ही है कि वे कांग्रेसपर किये गये ऐसे आक्षेपोंसे चिढ़ते हैं जिनसे कि उसकी उपयोगिता कम होती है। इसलिए अगर सर-