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चौबीस

भारतीयोंका मताधिकार छीन लेनेका और इस तरह उनकी मान-मर्यादा गिरा देने तथा उन्हें राजनीतिक अधिकारोंके प्रयोगसे वंचित करनेका एक विधेयक करीब-करीब स्वीकार होनेपर आ गया था।

गांधीजी १८९३ के मई मासमें वैरिस्टरकी हैसियतसे अपने पेशे सम्बन्धी कार्य के लिए दक्षिण आफ्रिका आये थे। १८९४ में जब वे अपना कानूनी कार्य समाप्त करके भारत लौटने ही वाले थे, उन्होंने समाचारपत्रोंमें इस विधेयककी चर्चा पढ़ी। उन्होंने अपने देशभाइयों को, जिनमें से अधिकतर अशिक्षित थे, समझाया कि उनपर इस विधेयकका क्या असर पड़ेगा। इसपर भारतीयोंने उन्हें वहाँ रुककर उनकी मदद करनेके लिए राजी किया। इस अन्यायको और भारतीयोंकी अन्य शिकायतों को दूर कराने के कार्यने उन्हें २१ वर्ष से अधिक, अर्थात् १९१४ तक, दक्षिण आफ्रिकामें रोके रखा।