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७९. भारतीयोंका मताधिकार[१]

बीच ग्रोव, डर्बन
१६ दिसम्बर, १८९५

दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक अंग्रेजके नाम अपील

जहाँतक समाचार पत्रोंका सम्बन्ध है, भारतीयोंके मताधिकारके प्रश्नने इस पूरे उपनिवेशको — बल्कि वास्तव में सारे दक्षिण आफ्रिकाको विक्षुब्ध कर दिया है। इसलिए इस अपीलके सम्बन्धमें कोई कैफियत देनेकी जरूरत नहीं है। इसके द्वारा दक्षिण आफ्रिकावासी प्रत्येक अंग्रेज के सामने, यथासम्भव संक्षेप में, भारतीय मताधिकारकी बाबत भारतीयोंका एक दृष्टिकोण पेश करनेका प्रयत्न किया जा रहा है।

भारतीयोंका मताधिकार छीननेके पक्ष में कुछ दलीलें ये हैं :

(१) भारतीय भारतमें मताधिकारका उपभोग नहीं करते।

(२) दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीय सबसे निचले दर्जेके भारतीयोंके प्रतिनिधि हैं। वास्तव में वे भारतका तलछट हैं।
(३) भारतीय समझते ही नहीं कि मताधिकार है क्या।
(४) भारतीयोंको मताधिकार नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि वतनी लोगोंको भारतीयोंके बराबर ही ब्रिटिश प्रजा होनेपर भी कोई मताधिकार प्राप्त नहीं है।
(५) भारतीयोंका मताधिकार वतनी लोगोंके हितार्थं छीन लेना चाहिए।

(६) यह उपनिवेश गोरोंका देश होगा, और रहेगा, काले लोगोंका नहीं। और भारतीयोंका मताधिकार तो यूरोपीय मतोंको सर्वथा निगल जायेगा, और भारतीयोंको राजनीतिक प्रभुता प्रदान कर देगा।

मैं इन आपत्तियोंकी क्रमसे विवेचना करूँगा।

बारंबार कहा गया है कि भारतीय जिन सुविधाओं व अधिकारोंका उपभोग भारतमें करते हैं उनसे ऊँची सुविधाओं व अधिकारोंका दावा न तो वे कर सकते हैं और न उन्हें करना चाहिए, भारतमें उन्हें किसी भी प्रकारका मताधिकार प्राप्त नहीं है।

अब पहली बात तो यह है कि भारतीय जिन सुविधाओं व अधिकारोंका उपभोग भारतमें करते हैं, उनसे ऊँची सुविधाओं व अधिकारोंका दावा वे नहीं कर रहे हैं। यह याद रखना चाहिए, भारतमें उस तरहका शासन नहीं है, जैसा कि यहाँ है। इसलिए साफ है कि इन दोनों शासनोंके बीच कोई तुलना नहीं हो सकती। इसके

 
  1. गांधीजीने लोकमान्य तिलक जैसे भारतीय नेताओं के पास इसकी प्रतियाँ भेजी थीं।