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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
एक तमिल सज्जन मद्रास उच्च न्यायालय के उप-न्यायाधीश हैं। यहाँके कुछ गिरमिटिया भारतीय उन्हींकी जातिके हैं। बंगालमें एक भारतीय सज्जनको सिविल कमिश्नरका अत्यन्त उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपा गया है।
भारतीयोंने कलकत्ता और बम्बई विश्वविद्यालयों में उपकुलपतिके आसनों को भी सुशोभित किया है।
प्रशासनिक सेवाओंकी प्रतियोगिताओं में भारतीय यूरोपीयोंके साथ बराबरीकी शर्तोंपर शामिल होते हैं।
बम्बई निगमके वर्तमान अध्यक्ष एक भारतीय हैं। उनका चुनाव निगमके सदस्योंके द्वारा हुआ है।
सभ्य जातियोंके बराबर होनेकी भारतीयोंकी योग्यताका ताजेसे ताजा प्रमाण 'लंदन टाइम्स' के २३ अगस्त, १८९५ के अंकसे प्राप्त होता है।
सभी जानते हैं, 'टाइम्स' के "भारतीय मामलात" के लेखक और कोई नहीं, सर विलियम विल्सन हंटर ही हैं। शायद वे भारतीय इतिहास के सबसे बड़े लेखक हैं। उनका कथन है :
यह सम्मान साहसके जिन कार्यों और उनसे भी अधिक उज्ज्वल सहन-शीलताके जिन उदाहरणोंसे कमाया गया, उनका वर्णन आश्चर्यमय आनन्दसे पुलकित हुए बिना पढ़ा नहीं जा सकता। 'ऑर्डर ऑफ मेरिट' पानेवाले एक सिपाहीके शरीरपर कमसे कम इकतीस घाव थे। 'इंडियन डेली न्यूज' का कथन है कि इतने ज्यादा घाव "पहले शायद किसीको नहीं लगे होंगे।" एक अन्य सिपाहीको उस दरेंमें गोली लगी थी, जिसमें रॉसकी टुकड़ी तहस-नहस हुई थी। उसने चुपके से शरीरको टटोल-टटोलकर गोलीको ढूंढा और दर्वकी परवाह किये बिना दोनों हाथोंसे दबा-दबाकर उसे ऊपर तक सरकाया। आखिर जब वह अँगुलियोंकी पकड़में आई तो उसे बाहर निकाल दिया। खूनकी धारा बह चली। परन्तु उसने फिरसे कंधेपर राइफल रखी और इक्कीस मीलका कूच पूरा किया।
परन्तु जिन भारतीय सैनिकोंने कीर्ति कमाई है, उनकी वीरता अगर हमारे अन्दर इस बातका अभिमान जगाती है कि हमारे बन्धु-प्रजाजन ऐसे हैं, तो उतने ही साहस और दृढ़ताके दूसरे मामलोंमें भिक्षाके बतौर दिये जानेवाले तुच्छ पारितोषिक बहुत अलग तरह की भावनाओंको जाग्रत करते हैं। 'कुरागकी लड़ाई में वीरता और धीरता दिखाने का श्रेय' चौथी बंगाल इन्फैंट्री के दो भिश्तियों को मिला था। युद्ध-खरोतों में विशेष सम्मानके साथ केवल उनके ही नामोंका उल्लेख किया गया था। सचमुच उस भयानक घाटीमें उन्होंने अपने साथियों के प्रति जिस भव्य आत्मत्यागका परिचय दिया था, उससे बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता। 'विशिष्ट वीरता और निष्ठा दिखानेके कारण उसी टुकड़ी के एक अन्य आदमीका भी उल्लेख किया गया था, जिसने स्वर्गीय
परन्तु जिन भारतीय सैनिकोंने कीर्ति कमाई है, उनकी वीरता अगर हमारे अन्दर इस बातका अभिमान जगाती है कि हमारे बन्धु-प्रजाजन ऐसे हैं, तो उतने ही साहस और दृढ़ताके दूसरे मामलोंमें भिक्षाके बतौर दिये जानेवाले तुच्छ पारितोषिक बहुत अलग तरह की भावनाओंको जाग्रत करते हैं। 'कुरागकी लड़ाई में वीरता और धीरता दिखाने का श्रेय' चौथी बंगाल इन्फैंट्री के दो भिश्तियों को मिला था। युद्ध-खरोतों में विशेष सम्मानके साथ केवल उनके ही नामोंका उल्लेख किया गया था। सचमुच उस भयानक घाटीमें उन्होंने अपने साथियों के प्रति जिस भव्य आत्मत्यागका परिचय दिया था, उससे बढ़कर और कुछ हो ही नहीं सकता। 'विशिष्ट वीरता और निष्ठा दिखानेके कारण उसी टुकड़ी के एक अन्य आदमीका भी उल्लेख किया गया था, जिसने स्वर्गीय