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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिया जाये कि मताधिकार-योग्यता जैसी-की-तैसी रहती है, तो यूरोपीय दृष्टिकोण से यह सूची बहुत सन्तोषप्रद है। पहले तो इसलिए कि संख्या की दृष्टिसे भारतीयोंका मत बल बहुत कम है और दूसरे, अधिकतर (३/४ से ज्यादा) भारतीय मतदाता व्यापारी वर्ग के हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि उपनिवेश में व्यापार करनेवाले भारतीयोंकी संख्या लम्बे समयतक करीब-करीब यही रहेगी। क्योंकि, जहाँ अनेक लोग हर महीने यहाँ आते हैं, उतने ही भारतको लौट भी जाते हैं। साधारणतः आनेवाले लोग जानेवालोंकी जगहोंपर रहते हैं।

अबतक मैंने दोनों समाजोंकी स्वाभाविक रुचिको दलील में बिलकुल दाखिल नहीं किया, सिर्फ अंकोंकी चर्चा की है। फिर भी स्वाभाविक रुचिका दोनोंकी राजनीतिक प्रवृत्तियों से कम सम्बन्ध नहीं होगा। इस विषय में कोई मतभेद नहीं हो सकता कि भारतीय साधारणतः राजनीति में सक्रिय हस्तक्षेप नहीं करते। उन्होंने कभी किसी स्थानपर राजनीतिक सत्ता हड़पनेका प्रयत्न नहीं किया। उनका धर्म (चाहे वे मुस्लिम हों चाहे हिन्दू, युग-युगकी शिक्षा सिर्फ नाम बदल जानेसे मिट नहीं जाती) उनको भौतिक प्रवृत्तियों के प्रति उदासीन रहना सिखाता है। स्वाभाविक है कि जबतक वे इज्जतके साथ आजीविका कमा सकते हैं, तबतक उन्हें संतोष रहता है। मैं यह कहनेकी स्वतन्त्रता लेता हूँ कि अगर उनके व्यापार-धंधे को कुचलने का प्रयत्न न किया गया होता, अगर उन्हें समाज में अछूतोंके दर्जेपर गिरानेके प्रयत्न न किये गये होते और उन प्रयत्नोंको बार-बार दुहराया न गया होता, अगर सचमुच उन्हें सदाके लिए 'लकड़हारे और पनिहारे' बनाकर अर्थात् सदाके लिए गिरमिटिया या उससे बहुत ज्यादा मिलती-जुलती हालत में रखनेका प्रयत्न न किया गया होता, तो मताधिकार सम्बन्धी आन्दोलन होता ही नहीं। मैं तो इससे भी आगे जाऊँगा। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि इस समय भी शब्द के सच्चे मानीमें किसी राजनीतिक आन्दोलनका अस्तित्व नहीं है। परन्तु अत्यन्त दुर्भाग्यकी बात है कि अखबार भारतीयोंको इस प्रकारके आन्दोलनके जनक बतानेका प्रयत्न कर रहे हैं। उन्हें अपने वैध धंधे करनेको स्वतन्त्र छोड़ दीजिए, उनको नीचे गिराने के प्रयत्न मत कीजिए, उनके साथ साधारण दयालुताका बरताव कीजिए, तो मताधिकारका कोई प्रश्न नहीं रहेगा। इसका सीधा-सादा कारण यह है कि वे अपने नाम मतदाता सूची में दर्ज करानेका कष्ट ही नहीं उठायेंगे।

परन्तु कहा यह गया है, और सो भी जिम्मेदार लोगों द्वारा, कि कुछ गिने-चुने भारतीय राजनीतिक सत्ता चाहते हैं; ये लोग मुसलमान आन्दोलनकारी हैं, जिनकी संख्या थोड़ी-सी है; और हिन्दुओंको पिछले अनुभवोंसे सीखना चाहिए कि मुसलमानोंका राज्य उनका नाश कर देनेवाला होगा। पहला कथन वेबुनियाद है और आखिरी कथन अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण और दुःखदायी है। अगर राजनीतिक सत्ता प्राप्त करनेका अर्थ विधानसभा में पैठना हो, तो उसे प्राप्त करना पूर्णतः असम्भव है। इस कथनका मतलब तो यह हुआ कि उपनिवेशमें बहुत धनी भारतीय मौजूद हैं, जिन्हें अंग्रेजी भाषाका अच्छा ज्ञान है। अब, खुशहाल और धनीका फर्क देखते हुए उपनिवेशमें तो