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भारतीयोंका मताधिकार

भी है, तो पूरे भारतीय प्रश्नपर ठंडे दिलसे विचार करनेका मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। और तब शायद यह प्रश्न ब्रिटिश सरकारके हस्तक्षेपके बिना ही ऐसे ढंगसे तय हो जायेगा जो दोनों पक्षोंके लिए सन्तोषजनक हो। धर्मगुरुओंको इस महत्त्वपूर्ण प्रश्नपर चुप क्यों रहना चाहिए? यह महत्त्वपूर्ण इसलिए है कि सारे दक्षिण आफ्रिकाके भविष्य पर इसका असर होनेवाला है। वे शुद्ध राजनीतिमें तो भाग लेते ही हैं। भारतीयोंका मताधिकार छीननेकी माँग करनेके लिए जो सभाएँ होती हैं उनमें भी वे जाते ही हैं। फिर यह प्रश्न तो केवल राजनीतिक ही नहीं है। क्या वे एक सारी-की-सारी जातिको तर्कहीन द्वेषभावके कारण नीचे गिराये जाते तथा अपमानित किये जाते चुपचाप देखते बैठे रहेंगे? क्या ईसाका ईसाई धर्म उन्हें इस तरहकी उपेक्षाकी अनुमति देता है?

मैं फिर दुहराता हूँ कि भारतीय राजनीतिक सत्ताकी इच्छा नहीं करते। वे नीचे ढकेले जानेसे और उन अनेक अन्य नतीजों और कानूनोंसे डरते और उनका विरोध करते हैं, जो मताधिकारके छीने जानेसे निकलेंगे, और उसपर आधारित किये जायेंगे।

अन्तमें, मैं उन लोगोंका हृदयसे ऋण मानूंगा, जो इसे पढ़ेंगे और इसकी विषय सामग्रीपर अपने विचार व्यक्त करेंगे। अनेक यूरोपीयोंने खानगी तौरपर भारतीयोंके प्रति सहानुभूति व्यक्त की है। भारतीय मताधिकारके सम्बन्धमें उपनिवेश में की गई विभिन्न सभाओं में जो सर्वग्रासी प्रस्ताव पास किये गये हैं और जो भाषण दिये गये हैं उनकी कटु ध्वनिको भी उन्होंने जोरोंसे नापसन्द किया है। अगर ये सज्जन सामने आकर अपने विश्वास व्यक्त करनेका साहस दिखायें तो उन्हें चौहरा पुरस्कार मिलेगा। वे उपनिवेशके ४०,००० भारतीयोंकी — सचमुच तो सारे भारतकी — कृतज्ञता अर्जित कर लेंगे; यूरोपीयोंके दिलसे यह खयाल निकालकर कि भारतीय लोग उपनिवेशके लिए अभिशाप-स्वरूप हैं, उपनिवेशकी सच्ची सेवा करेंगे; वे अनावश्यक उत्पीड़नसे, जो वे जानते हैं कि सारे दक्षिण आफ्रिकामें फैला हुआ है, एक प्राचीन जातिके एक भागकी रक्षा करके, या रक्षामें मदद करके, मानव-जातिकी सेवा करेंगे; और अन्तमें, किन्तु महत्त्वमें कम नहीं, उदात्ततम अंग्रेजोंके साथ मिलकर ऐसी कड़ियाँ गढ़नेवाले बनेंगे, जो इंग्लैंड तथा भारतको प्रेम तथा शान्तिके बन्धनमें बाँधेंगी। मेरा नम्र निवेदन है कि इसके लिए अग्रणियोंका जो थोड़ा-बहुत उपहास किया जायेगा, वह इसके महत्त्वकी दृष्टिसे सहने योग्य है। दो समाजोंको परस्पर फोड़ देना सरल है, परन्तु उन्हें प्रेमके 'रेशमी धागे' से बाँधकर एक करना उतना ही कठिन है। परन्तु ऐसी प्रत्येक वस्तुके लिए जो प्राप्त करने योग्य होती है, भारी मात्रामें कष्ट और परेशानी सहना भी अपेक्षित होता है।

इस विषय में नेटाल भारतीय कांग्रेसका नाम लिया गया है और उसकी बहुत गलत तसवीर खींची गई है। एक पृथक् पुस्तिकामें[१] उसके ध्येय और कार्य-पद्धतिका पूरी तरह विवेचन किया जायेगा।

 
  1. उपलब्ध नहीं।