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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


परन्तु, यह सब करनेके लिए अन्नाहारके तत्त्वको धर्म मानना होगा, केवल आरोग्यकी सुविधा नहीं। उसके मंचको बहुत ऊँचा उठाना होगा।

[अंग्रेजीसे]
वेजिटेरियन, २१-१२-१८९५

 

८१. पत्र : 'नेटाल मर्क्युरी' को

डर्बन
३ फरवरी, १८९६

सम्पादक
'नेटाल मर्क्युरी'

महोदय,

मैं आहार सुधारमें दिलचस्पी रखता हूँ। इस हैसियत से मैं आपको आपके शनिवारके "चिकित्साका नया विज्ञान" शीर्षक अग्रलेखपर बधाई देना चाहता हूँ। उसमें आपने प्राकृतिक आहार, अर्थात् अन्नाहारपर खूब ही जोर दिया है। इस 'विलासप्रिय' युगमें कोई भी आदमी खड़ा होकर किसी भी सिद्धान्तका बौद्धिक तरीके से समर्थन करने लगता है, परन्तु उसके अनुसार काम करनेका तो उसका कोई इरादा नहीं होता। अगर इस युगकी यह दुर्भाग्यपूर्ण खासियत न होती तो हर आदमी अन्नआहारी बन जाता। क्योंकि, जब सर हेनरी टॉमसन कहते हैं कि मांसाहारको जीवन-पोषणके लिए आवश्यक समझना एक मूर्खतापूर्ण बात है, और जब चोटीके शरीरशास्त्र-वेत्ता घोषित करते हैं कि मनुष्यका प्राकृतिक आहार फल है, और जब हमारे सामने बुद्ध, पाइथागोरस, प्लेटो, रे, डैनियल, वेज्ले, हॉवार्ड, शेली, सर आइजक पिटमैन, एडीसन, सर डब्ल्यू० बी० रिचर्डसन, आदि अनेकानेक महान व्यक्तियोंके अन्नाहारी होनेके उदाहरण मौजूद हैं, तब स्थिति उलटी क्यों होनी चाहिए? ईसाई अन्नाहारियों का दावा है कि ईसा भी अन्नाहारी थे और इस विचारका खण्डन करनेवाली कोई बात दिखलाई नहीं पड़ती। सिर्फ इतना उल्लेख मिलता है कि पुनरुत्थानके बाद उन्होंने भुनी हुई मछली खाई थी। दक्षिण आफ्रिकाके सबसे सफल मिशनरी (ट्रैपिस्ट) अन्नाहारी हैं। प्रत्येक दृष्टिसे देखनेपर अन्नाहारको मांसाहारकी अपेक्षा बहुत श्रेष्ठ साबित किया जा चुका है। अध्यात्मवादियोंका मत है, और शायद आम प्रोटेस्टेंट धर्मशिक्षकों को छोड़कर शेष सारे धर्मोके आचार्योंके व्यवहारसे मालूम होता है कि मनुष्यकी आध्यात्मिक शक्तिको जितनी हानि अविवेकमय मांसाहारसे पहुँचती है उतनी किसी दूसरी चीजसे नहीं पहुँचती। अत्यन्त निष्ठावान अन्नाहारियोंका कहना है कि आधुनिक युगकी ईश्वर-विषयक संशयशीलता, भौतिकवाद, और धार्मिक उदासीनताका कारण बहुत ज्यादा मांसाहार तथा मद्यपान है, और इसके परिणामस्वरूप मनुष्यकी आध्यात्मिक शक्ति अंशतः या पूर्णतः नष्ट हो गई है। मनुष्यकी बौद्धिक शक्तिके प्रशंसक अन्नाहारी