प्रार्थी इन नियमोंका अर्थ यह समझते हैं कि सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाको नोंदवेनी बस्ती में जमीन खरीदने या प्राप्त करनेसे वंचित किया जा रहा है।
यूरोपीय और भारतीय ब्रिटिश प्रजाके बीच इस प्रकार जो द्वेषजनक भेदभाव किया जा रहा है उसका आपके प्रार्थी आदरके साथ किन्तु जोरदार शब्दोंमें विरोध करते हैं।
इस प्रकार वंचित किये जानेका कोई कारण भी हम देख नहीं पाते। यह बात अलग है कि दक्षिण आफ्रिकामें रंग-द्वेषके कारण जिन अनेक मुद्दोंको मान लिया गया है, उनमें ही यह भी एक हो।
प्रार्थी नम्रतापूर्वक निवेदन करते हैं कि सम्राज्ञीकी प्रजाके किसी एक भागपर दूसरे भागको इस तरहकी तरजीह देना न सिर्फ ब्रिटिश नीति और न्यायके प्रतिकूल है, बल्कि भारतीय समाजके मामलेमें तो १८५८ की घोषणाका उल्लंघन भी है। वह घोषणा भारतीयोंको यूरोपीयोंकी बराबरीके व्यवहारका अधिकार देती है।
प्रार्थी यह भी निवेदन करते हैं कि ट्रान्सवाल- निवासी भारतीयोंकी ओरसे सम्राज्ञी की सरकारके प्रयत्नोंको देखते हुए जमीनकी मिल्कियत-सम्बन्धी अधिकारोंके बारेमें विचाराधीन नियमोंमें किया गया भेद कुछ विचित्र और असंगत है।
प्रार्थी यह उल्लेख करनेकी भी इजाजत चाहते हैं कि जुलूलैंडके दूसरे भागों में बहुत-से भारतीयोंके पास जमीन है।
इसलिए प्रार्थी सविनय प्रार्थना करते हैं कि नियमोंकी धारा २३ के अन्तर्गत सुरक्षित अधिकारोंके बलपर महानुभाव इन नियमोंमें ऐसे परिवर्तनों या संशोधनोंका आदेश दें, जिनसे उपर्युक्त भेदभाव दूर हो जाये।
और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी, कर्त्तव्य समझकर, सदैव दुआ करेंगे, आदि।[१]
अब्दुल करीम हाजी
और अन्य ३९ व्यक्ति
अंग्रेजी (एस° एन° ७५५) की फोटो नकलसे।
- ↑ इस प्रार्थनापत्रको २७ फरवरीको इस आधारपर नामंजूर कर दिया गया था कि वे नियम २८ सितम्बर, १८९१ के उन विनियमोंके समरूप हैं जिनको एशोवे वस्तीके मामलेमें प्रवर्तित किया गया है। देखिए "पत्र : सो° वॉल्शको", ४-३-१८९६।