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पत्र : 'नेटाल मर्क्युरी' को

चाहिए। मैंने यह भी निवेदन किया कि इस प्रकारके मामलोंमें अगर पुलिसको शक ही हो तो वह पकड़े गये लोगोंपर नजर रखकर उन्हें उनके घर पहुँचा सकती है। परन्तु यदि यह भी न हो सके तो उन्हें भद्र व्यक्तियोंके तौरपर हिरासत में रखा जाये और पहले से ही चोर मा डाकू न मान लिया जाये। उनकी पोशाक, धर्म और नामके सम्बन्धमें आक्षेप करना बड़ी आसानीसे तबतक स्थगित रखा जा सकता है, जबतक कि वे वंचक साबित न हो जायें।

लगभग एक वर्ष पूर्व मैं स्टैंडर्टनसे डर्बन जा रहा था। मेरे दो साथी यात्रियों पर चोर होनेका सन्देह किया गया। फोक्सरस्टमें उनके सामानकी और उसके साथ मेरे सामान की भी — क्योंकि मैं भी उसी डिब्बेमें था — तलाशी ली गई और एक खुफियाको डिब्बेमें बैठा दिया गया। जो मजिस्ट्रेट तलाशी लेने आया था वे उसे व्हिस्कीका प्याला दे सकते थे और खुफियाके साथ भद्र लोगोंके तौरपर बराबरीके साथ बातचीत कर सकते थे। यह शायद इसलिए सम्भव था कि वे इज्जतदारोंकी पोशाक पहने थे और पहले दर्जे में यात्रा कर रहे थे। खुफियाने पहलेसे ही उनके बारेमें फैसला नहीं कर लिया। परन्तु मुझे यह बता देना चाहिए कि वे यूरोपीय थे। सारे रास्ते खुफिया खिन्न रहा कि उसे इस अप्रिय कर्त्तव्यका पालन करना पड़ रहा था। क्या मैं अनुरोध करूँ कि इन अभागे युवकोंके जैसे मामलोंमें भी इसी प्रकारका व्यवहार किया जाये? उनको कालकोठरीके बदले किसी दूसरी जगहमें रखा जा सकता था। अगर कालकोठरी में रखना अनिवार्य ही था तो उन्हें सोनेके लिए साफ कम्बल दिये जा सकते थे। सिपाही उनके साथ शिष्टतासे बातचीत कर सकता था। अगर ऐसा किया गया होता तो मामला मजिस्ट्रेट के पास जाता ही नहीं।

मैं सुपरिंटेंडेंटके इस बयानपर आपत्ति करता हूँ कि "इन नौजवान उचक्कोंने जमानत पर छूटने के बजाय रातभर हवालात में बन्द रहना पसन्द किया।" सच बात इससे उलटी है। वे जमानत दे रहे थे, मगर रातको उसे लेनेसे इनकार कर दिया गया। मजिस्ट्रेटने इस व्यवहारको पसन्द नहीं किया। सुबह उन्होंने फिरसे जमानतपर छोड़े जानेका अनुरोध किया। दूसरे अभियुक्तका अनुरोध मान लिया गया, परन्तु पहलेको जमानतपर छोड़ने से पुलिसने इनकार कर दिया। उसके नामके आगे लिख रखा गया — 'रिहा न किया जाये।' ऐसा लिखा हुआ रजिस्टर अदालत में पेश किया गया था। बादमें इन्स्पेक्टर बेनीके कहने से उसे रिहा किया गया। इन्स्पेक्टर बेनीने, जैसे ही गलतीका पता चला, उसका निवारण कर दिया।

सुपरिटेंडेंट के प्रति आदरके साथ मेरा निवेदन है कि पहले अभियुक्तने कानूनका भंग नहीं किया। मजिस्ट्रेटने कोई आदेश तो नहीं दिया, परन्तु अपने पितृवत् और दयालु तरीकेसे सुझाव दिया कि मैं उसे मेयरसे परवाना[१] ले लेनेकी सलाह दूं। मैंने निवेदन किया कि वैसा करना जरूरी तो नहीं है, किन्तु उनकी सलाहका सम्मान करनेके लिए मैं वैसा करूँगा। अब प्रतिवादीको टाउन-क्लार्कके पाससे जवाब मिला है कि उसे पास नहीं दिया जायेगा, क्योंकि किसी क्लर्क और रविवासरीय स्कूलके

 
  1. रातको बाहर निकलनेका।