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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


(५) वर्तमान विधेयकसे, उसके सन्दिग्ध अर्थ और अस्पष्टताके कारण, अनन्त मुकदमेबाजीका दौर दौरा शुरू हो जाना सम्भव है।

(६) इससे भारतीय समाज ऐसे खर्चमें पड़ जायेगा, जिसे बरदाश्त करना उसके लिए करीब-करीब असम्भव होगा।

(७) मान लिया जाये कि विधेयक भारतीय समाजके मताधिकारपर प्रतिबन्ध लगाता है। तो फिर उस समाजके किसी सदस्यके उसके अमलसे छुटकारा पानेका जो उपाय उसमें बताया गया है, प्रार्थी आदरपूर्वक निवेदन करते हैं, वह मनमाना तथा अन्यायपूर्ण है। उससे भारतीय समाजके अन्दर झगड़े पैदा होनेकी सम्भावना है।

(८) जो कानून रद किया गया है उसके समान ही यह विधेयक भी यूरोपीयों तथा अन्य वर्गोंके बीच द्वेषजनक भेद-भाव उत्पन्न करनेवाला है।

प्राथियोंका नम्र निवेदन है कि नेटालकी मतदाता-सूचीको वर्तमान दशामें भारतीयोंके मताधिकारपर रोक लगानेके लिए कोई कानून बनाना बिलकुल अनावश्यक है। यह कानून सम्राज्ञीकी प्रजाके एक बहुत बड़े हिस्सेपर असर डालनेवाला है और इसे स्वीकार करनेमें गैर-जरूरी जल्दी की जाती दिखाई दे रही है। यह मंजूर किया जा चुका है कि ९,३०९ यूरोपीय मतदाताओंके मुकाबले भारतीय मतदाताओंकी संख्या केवल २५१ है; उनमें से २०१ या तो व्यापारी हैं या मुहर्रिर, सहायक, शिक्षक आदि; ५० बागवान तथा अन्य धंधेवाले हैं। इन मतदाताओं में से ज्यादातर लम्बे समयसे उपनिवेशमें बसे हुए हैं। हमारा निवेदन है कि इन आँकड़ोंसे किसी रोक-थामके कानूनकी जरूरत सिद्ध नहीं होती। विचाराधीन विधेयकका मंशा एक दूरके, शक्य और सम्भाव्य खतरेके बारेमें व्यवस्था करनेका है। सच तो यह है कि एक ऐसा खतरा मान लिया गया है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है। सर जॉन रॉबिन्सनने विधेयकका दूसरा वाचन पेश करते हुए भारतीय मतों द्वारा यूरोपीय मतोंको निगल जानेका खतरा बताया था। उन्होंने अपने इस भयके निम्नलिखित तीन कारण बताये थे :

(१) वर्तमान विधेयक द्वारा रद किये जानेवाले मताधिकार कानूनके सम्बन्ध में सम्राज्ञी-सरकारको जो प्रार्थनापत्र भेजा गया था, उसपर लगभग ९,००० भारतीयोंने हस्ताक्षर किये थे।

(२) उपनिवेशमें आम चुनाव नजदीक आ रहे हैं।

(३) नेटाल भारतीय कांग्रेसका अस्तित्व।

जहाँतक पहले कारणका सम्बन्ध है, इस विषयके पत्र-व्यवहार तकमें नेटाल सरकारने कहा है कि वे ९,००० हस्ताक्षरकर्त्ता मतदाता सूचीमें शामिल होना चाहते हैं। प्रार्थनापत्रका पहला अनुच्छेद इस तर्कका पर्याप्त उत्तर है। नम्र निवेदन है कि प्रार्थियोंने ऐसी किसी चीजकी कभी माँग नहीं की। उन्होंने सारेके-सारे भारतीयोंका मताधिकार छीननेका विरोध बेशक किया है। प्रार्थी मानते हैं कि प्रत्येक भारतीयपर — चाहे वह सम्पत्तिजन्य योग्यता रखता हो या न रखता हो — विधेयकका बहुत भारी असर पड़नेवाला है। वे स्वीकार करते हैं कि माननीय प्रस्तावकके बताये इस