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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय



प्रार्थियोंका निवेदन है कि कांग्रेसके बारेमें यह अन्दाजा वस्तुस्थितिकी कसौटीपर खरा नहीं उतरता। जैसा कि नेटालके प्रधान मन्त्री और कांग्रेसके अवैतनिक मन्त्री के पत्र-व्यवहारसे स्पष्ट हो जायेगा, गुप्तताका आरोप एक गलत खयालके कारण किया गया था (परिशिष्ट ख, ग, घ )[१]। इस विषय में उन्होंने २० तारीखको विधानसभा में एक वक्तव्य भी दिया था।

कांग्रेसने कभी किसी रूप में 'प्रबल राजनीतिक शक्तिका प्रयोग करने' का इरादा या प्रयत्न भी नहीं किया। कांग्रेसके ध्येय नीचे लिखे अनुसार हैं, जो पिछले वर्ष दक्षिण आफ्रिका प्रायः प्रत्येक पत्र में प्रकाशित किये गये थे :

"(१) उपनिवेशवासी यूरोपीयों और भारतीयोंके बीच अधिक मेलजोल पैदा करना और मित्रताका भाव बढ़ाना।

"(२) पत्रों में लेख लिखकर, पुस्तिकाएँ प्रकाशित करके और व्याख्यानों द्वारा भारत और भारतीयोंके बारेमें जानकारीका प्रसार करना।

"(३) भारतीयोंको, और खास तौरसे उपनिवेश में पैदा हुए भारतीयोंको, भारतीय इतिहासकी शिक्षा देना और उन्हें भारतीय विषयोंका अध्ययन करनेको प्रेरित करना। (४) भारतीयोंको जो मुसीबतें भोगनी पड़ रही हैं उनका पता लगाना और उनका निवारण करने के लिए सब वैध उपायोंसे आन्दोलन करना।

"(५) गिरमिटिया भारतीयोंकी हालतोंकी जाँच करना और उन्हें सहायता देकर विशेष कठिनाइयोंसे उबारना।

"(६) गरीबों और जरूरतमन्दों को सब उचित तरीकोंसे सहायता देना।

"(७) और, आम तौरपर ऐसे सब काम करना, जिनसे भारतीयोंकी नैतिक, सामाजिक, बौद्धिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार हो।"

इस प्रकार देखा जायेगा कि कांग्रेसका ध्येय भारतीयोंके अपकर्षको रोकना ही है, राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना नहीं। जहाँतक धनकी बात है, लिखने के समय कांग्रेस के पास लगभग १,०८० पौंडकी जायदाद है, और १४८ पौंड ७ शि° ८ पेंसकी रकम बैंक में जमा है। यह धन धर्मार्थ कार्यों, प्रार्थनापत्रोंकी छपाई और चालू खर्च के लिए है। प्राथियोंके विनम्र मतसे यह धन कांग्रेसके ध्येय पूरे करनेके लिए भी काफी नहीं है। धन न होनेसे शिक्षा-सम्बन्धी कार्यमें भारी बाधा पड़ रही है। इसलिए प्रार्थी निवेदन करना चाहते हैं कि वर्तमान विधेयकका मंशा जिस खतरेसे रक्षा करने का है, उसका कोई अस्तित्व है ही नहीं।

तथापि सम्राज्ञी-सरकारसे प्रार्थियोंकी यह विनती नहीं है कि उनके अपने कथनके आधारपर ही उपर्युक्त तथ्योंको स्वीकार कर लिया जाये। अगर इनमें से किसी के भी बारेमें कोई सन्देह हो तो प्रार्थियों का निवेदन है, उचित तरीका यह होगा कि उनके बारेमें जाँच कराई जाये। सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि हजारों लोगों में मतदाता बनने के लिए आवश्यक सम्पत्तिजन्य योग्यता नहीं है। इसलिए इसकी खास तौरसे जाँच की जानी चाहिए कि उपनिवेशमें ऐसे भारतीय कितने हैं, जिनके पास ५०

 
  1. देखिए "पत्र : प्रधान मन्त्रीको", १४-५-१८९६ और "पत्र : सी° वर्डको", १८-५-१८९६।