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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको


ऐसे संघर्षका खर्च भारतीयोंकी शक्तिके परे है। इसे साबित करनेके लिए किसी दलीलकी जरूरत नहीं। साराका सारा संघर्ष बेजोड़ पक्षोंके बीच है।

अब, यह भी मान लिया जाये कि सर्वोच्च न्यायालयने अपना मत दे दिया है कि भारतीयोंके पास 'संसदीय मताधिकारपर आधारित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ' नहीं हैं। तो फिर, विधेयकमें भारतीयोंको मतदाता सूची में शामिल करनेकी जो पद्धति बताई गई है वह, प्रार्थियों के नम्र मतसे, हर तरह असन्तोषप्रद हो जाती है।

विधेयकका जो भाग गवर्नरको अधिकार प्रदान करता है उसको तो यूरोपीयोंने भी उतने ही जोरोंसे नापसन्द किया है। 'नेटाल विटनेस' ने उस विषय में कहा है :

. . . वह महान संवैधानिक सिद्धान्तोंपर हमला करता है। इसके अलावा नेटालकी प्रातिनिधिक संस्थाओंके कार्य में वह एक ऐसे तत्त्वको दाखिल करता है, जिसे अज्ञात राशि कहा जा सकता है। यह है, उन संस्थाओंपर पड़नेवाला तीसरी उपधाराका असर। यह उपधारा मतदाता सूची के लिए योग्य एशियाइयों का चुनाव करनेके हेतु छः व्यक्तियोंके निर्वाचक मण्डलको व्यवस्था करती है। . . . मालूम होता है कि मन्त्रिमण्डल इस कल्पनासे (अर्थात् अप्रत्यक्ष चुनावसे) चिपटा हुआ है। परन्तु उसने अपने-आपको और गवर्नरको अप्रत्यक्ष निर्वाचक मण्डलको हस्ती देकर न सिर्फ एक अनर्थकारी बल्कि अत्यन्त अनुचित कार्य भी किया है।

उसी प्रश्नको फिर उठाते हुए वह कहता है :

विधानसभाने एक ऐसे विधेयकको स्वीकार करके जनताका आदर नहीं कमाया, जिसपर अधिकतर प्रमुख सदस्योंको अविश्वास है। वे देख सकते हैं कि यह विधेयक एक समझौता है — एक ऐसा समझौता जो बिलकुल निष्फल हो सकता है। जब वह पहले-पहल प्रकाशित हुआ था तब हमने कहा था कि वह विधानसभाके विशेषाधिकारों और संवैधानिक सिद्धान्तोंपर भी बहुत खतरनाक वार करनेवाला है। और, प्रत्येक सदस्यसे अपेक्षा तो यह थी कि वह इन सिद्धान्तोंको अक्षुण्ण रखनेके लिए अपने-आपको गम्भीर उत्तरदायित्वसे बँधा हुआ मानेगा। कुछ सदस्योंको इस अन्तिम आपत्तिकी याद दिलाने की जरूरत न होगी। श्री बेलने कहा था कि गवर्नर तथा मन्त्रिमण्डल सत्ताधारी हैं, इसलिए चुनाव करनेका अधिकार उनको नहीं देना चाहिए; वह तो सिर्फ जनताके हाथों में रहना चाहिए। बेशक, उसका प्रयोग तो उसके प्रतिनिधि ही करेंगे। . . . परन्तु अखबारोंको तो वर्तमान संसदकी नहीं, भावी संसदोंकी चिन्ता है। . . . एक महान संवैधानिक सिद्धान्तको एक बार तोड़ दिया गया तो, भले ही सेंध कितनी ही छोटी क्यों न हो, कोई भी सत्तालोभी सरकार उसे कभी भी बढ़ा लेगी — यह खतरा हमेशा के लिए खड़ा हो जायेगा।