हैं कि अगर भारतीयोंके मत प्रबल हो जानेका जरा भी खतरा हो तो सबके लिए समान रूपसे एक शिक्षा-सम्बन्धी कसौटी निर्धारित कर दी जाये। उसके साथ सम्पत्तिजन्य योग्यतामें भी चाहे तो वृद्धि कर दी जाये, या न की जाये। इससे, सरकारी मुखपत्रके मतानुसार भी, सब भय निर्मूल हो जायेगा। अगर यह असफल रहे तो बादमें ज्यादा सख्त कसौटी लागू की जा सकती है, जो यूरोपीयोंके मतोंमें बाधा डाले बिना भारतीयोंपर असर करनेवाली हो। अगर नेटाल-सरकारको भारतीयोंको मताधिकारसे पूरी तरह वंचित कर देनेसे कम किसी बातसे सन्तोष न हो और अगर सम्राज्ञी-सरकार ऐसी माँगको मंजूर करनेके अनुकूल हो तो, प्रार्थियोंका निवेदन है, भारतीयोंको नाम लेकर वंचित करनेसे ही कठिनाईका सन्तोषजनक हल निकल सकेगा। इससे कम कोई कार्रवाई काफी न होगी।
परन्तु प्रार्थी आपका ध्यान आकर्षित करते हैं कि यूरोपीय उपनिवेशियोंकी समग्र रूपसे ऐसी कोई माँग नहीं है। वे बिलकुल उदासीन दिखलाई पड़ते हैं। 'नेटाल एडवर्टाइजर' ने इस उदासीनतापर खरी-खोटी सुनाई है :
ऊपरके उद्धरणोंसे स्पष्ट हो जायेगा कि वर्तमान विधेयक किसी भी पक्षको सन्तोष देनेवाला नहीं है। नेटालके मन्त्रिमण्डल और दोनों विधानमण्डलोंके प्रति अधिक-से-अधिक आदरके साथ प्रार्थी निवेदन करना चाहते हैं कि उन्होंने विधेयकको स्वीकार कर लिया है, इसमें बहुत अर्थ नहीं है। विधेयकके सक्रिय विरोधसे अलग रहनेवाले सदस्य स्वयं ही 'नेटाल विटनेस' के कथनानुसार, उसके बारेमें अविश्वाससे ग्रस्त हैं।
प्रार्थियोंको आशा है कि उन्होंने सन्तोषजनक रूपमें सिद्ध कर दिया है कि ऊपर बताया हुआ खतरा काल्पनिक है। वर्तमान विधेयक उन लोगोंकी दृष्टिसे भी जो