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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं कि अगर भारतीयोंके मत प्रबल हो जानेका जरा भी खतरा हो तो सबके लिए समान रूपसे एक शिक्षा-सम्बन्धी कसौटी निर्धारित कर दी जाये। उसके साथ सम्पत्तिजन्य योग्यतामें भी चाहे तो वृद्धि कर दी जाये, या न की जाये। इससे, सरकारी मुखपत्रके मतानुसार भी, सब भय निर्मूल हो जायेगा। अगर यह असफल रहे तो बादमें ज्यादा सख्त कसौटी लागू की जा सकती है, जो यूरोपीयोंके मतोंमें बाधा डाले बिना भारतीयोंपर असर करनेवाली हो। अगर नेटाल-सरकारको भारतीयोंको मताधिकारसे पूरी तरह वंचित कर देनेसे कम किसी बातसे सन्तोष न हो और अगर सम्राज्ञी-सरकार ऐसी माँगको मंजूर करनेके अनुकूल हो तो, प्रार्थियोंका निवेदन है, भारतीयोंको नाम लेकर वंचित करनेसे ही कठिनाईका सन्तोषजनक हल निकल सकेगा। इससे कम कोई कार्रवाई काफी न होगी।

परन्तु प्रार्थी आपका ध्यान आकर्षित करते हैं कि यूरोपीय उपनिवेशियोंकी समग्र रूपसे ऐसी कोई माँग नहीं है। वे बिलकुल उदासीन दिखलाई पड़ते हैं। 'नेटाल एडवर्टाइजर' ने इस उदासीनतापर खरी-खोटी सुनाई है :

जिस ढंग से संसदने इस सर्व महत्त्वपूर्ण विषयपर विचार किया है उससे शायद एक चौथी बात भी प्रकट होती है। वह है अपनी राजनीतिके सम्बन्धमें उपनिवेशकी उदासीनता। अगर पता लगाया जा सके तो यह जानना बड़ा रोचक होगा कि कितने उपनिवेशियोंने विधेयकको पढ़ने का भी कष्ट उठाया है। शायद जिन लोगोंने नहीं पढ़ा उनका अनुपात बहुत बड़ा होगा। इस विषय में उपनिवेशियोंकी आम उपेक्षा इस बातसे प्रकट होती है कि उपनिवेश के कोने-कोनेकी तो बात ही क्या हर केन्द्र में भी यह माँग करनेके लिए सभाएँ नहीं की गई कि संसद सिर्फ ऐसा विधेयक स्वीकार करे जिससे कि इस विषय में आगे तमाम वाद-विवाद व्यर्थ हो जाये। अगर उपनिवेश परिस्थितिकी सच्ची गम्भीरताके प्रति जागरूक होता तो अखबारोंके पन्ने इस प्रश्नपर गम्भीर और बुद्धिमत्तापूर्ण पत्र-व्यवहारसे भर जाते। परन्तु इनमें से कोई भी बात हुई नहीं। फलतः सरकार एक ऐसा विधेयक स्वीकार करने में सफल हो गई है जो स्थितिको निबटानेवाला माना जाता है। परन्तु सचमुच में तो वह स्थितिको इतनी बदतर और खतरनाक बना देनेवाला है, जितनी कि पहले कभी नहीं रही।

ऊपरके उद्धरणोंसे स्पष्ट हो जायेगा कि वर्तमान विधेयक किसी भी पक्षको सन्तोष देनेवाला नहीं है। नेटालके मन्त्रिमण्डल और दोनों विधानमण्डलोंके प्रति अधिक-से-अधिक आदरके साथ प्रार्थी निवेदन करना चाहते हैं कि उन्होंने विधेयकको स्वीकार कर लिया है, इसमें बहुत अर्थ नहीं है। विधेयकके सक्रिय विरोधसे अलग रहनेवाले सदस्य स्वयं ही 'नेटाल विटनेस' के कथनानुसार, उसके बारेमें अविश्वाससे ग्रस्त हैं।

प्रार्थियोंको आशा है कि उन्होंने सन्तोषजनक रूपमें सिद्ध कर दिया है कि ऊपर बताया हुआ खतरा काल्पनिक है। वर्तमान विधेयक उन लोगोंकी दृष्टिसे भी जो