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दक्षिण आफ्रिकाका वैधानिक तन्त्र
(१८९० - १९१४)
केप उपनिवेश

सन् १८५३ के संविधान अध्यादेशके अनुसार केप उपनिवेशके शासनतन्त्र में एक गवर्नरकी व्यवस्था थी। गवर्नरको कार्यपालक अधिकार तो थे, किन्तु वह विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी नहीं था। विधानमण्डलके दो सदन थे — विधानसभा और विधान-परिषद। दोनों ही चुनाव-मूलक सदन थे। १८७२ में उपनिवेशको सात विभागोंमें बाँट कर और प्रत्येक विभागके प्रतिनिधियोंको शामिल करके विधानमंडलका पुनर्गठन कर दिया गया। उसका स्वरूप थोड़ा-बहुत कैनेडा तथा आस्ट्रेलिया के औपनिवेशिक विधान-मंडलोंका जैसा था। परन्तु उसे स्थानीय आवश्यकताओंके अनुकूल ढाल लिया गया था।

विधान-परिषद सम्बन्धी मताधिकार बहुत कम लोगोंको था। उसके लिए बहुत ज्यादा साम्पत्तिक योग्यता निश्चित की गई थी। १८९२ के मताधिकार और मत-पत्र अधिनियम में व्यवस्था थी कि मतदाता बनने के लिए या तो ५० पौंड वार्षिककी आय होनी चाहिए या ७५ पौंड मूल्यकी अचल सम्पत्ति। लेखन-योग्यताकी एक कसौटी भी निर्धारित कर दी गई थी। यद्यपि ये नियम सब लोगोंपर समान रूपसे लागू थे, फिर भी व्यवहारमें इनसे गैर-गोरे मतदाताओंकी संख्या बहुत सीमित हो गई थी। गोरे मतदाताओंका अनुपात उनसे बहुत अधिक था।

संविधान उदार, औपनिवेशिक स्वरूपका था, जिसमें अपनी दृष्टिके अनुसार स्वदेश नीति निर्धारित करनेका अधिकार शामिल था। परन्तु उसे प्रत्यक्ष कार्यान्वित करने में मूल देश — ब्रिटेन — का अनुमोदन अपेक्षित था। यह संविधान वास्तविक रूपमें १९१० तक, जब कि केप उपनिवेश दक्षिण आफ्रिकी संघका प्रदेश बना, जारी रहा।

सन् १८९४ के ग्लेन-ग्रे अधिनियमसे ग्राम और जिला परिषदोंके द्वारा वतनी लोगोंको आंशिक स्वायत्त शासन प्राप्त हुआ। ये परिषदें बृहत् परिषदके दायरेके अन्दर थीं। प्रत्येक परिषदके ६ सदस्य होते थे — ४ निर्वाचित और २ नामजद। अध्यक्ष कोई यूरोपीय मजिस्ट्रेट होता था। बृहत् परिषदमें प्रत्येक जिला परिषदके तीन आफ्रिकी प्रतिनिधि होते थे दो निर्वाचित और एक नामजद। बृहत् परिषदकी आयका साधन बेगारसे मुक्ति पानेका कर और झोंपड़ी कर था। उसे स्वायत्त शासनका बहुत अधिकार था। जिला परिषदोंको कर लगानेका कोई मौलिक अधिकार नहीं था। १८९९ से १९०३ तकके कालमें ग्लेन-ग्रे अधिनियमका विस्तार उपनिवेशके केंटनी तथा अन्य जिलोंमें हो गया था।

सन् १९०९ के जिस दक्षिण आफ्रिका अधिनियमके अनुसार दक्षिण आफ्रिकी संयुक्त राज्यका निर्माण हुआ, उसके द्वारा केप उपनिवेशके 'रंग-निरपेक्ष' मताधिकारको यह नियम बनाकर सुरक्षित कर दिया गया था कि केवल रंग या जातिके आधारपर