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४. लन्दन-दैनन्दिनी[१]

लन्दन
१२ नवम्बर, १८८८

इंग्लैंड आनेका इरादा करनेके क्या कारण थे? बात अप्रैलके लगभग अन्तमें शुरू हुई। अध्ययनके लिए लंदन आनेके इरादेने जब प्रत्यक्ष रूप ग्रहण किया उसके पहले ही मेरे मन में यहाँ आने और आखिर लंदन है क्या, अपनी यह जिज्ञासा तृप्त करनेका मंसूबा दबा पड़ा था। जब मैं भावनगर कालेजमें पढ़ रहा था, जयशंकर बूचसे मेरी मामूली बातें हुई थीं। बातोंके दौरानमें उन्होंने मुझे सलाह दी थी कि तुम तो सोरठके निवासी हो, इसलिए जूनागढ़ राज्यको लंदन जानेके लिए छात्रवृत्तिकी अर्जी दो। उस दिन मैंने उन्हें क्या जवाब दिया था, यह अब अच्छी तरह याद नहीं आता । ऐसा लगता है कि मैंने छात्रवृत्ति पाना असम्भव समझा होगा। उस [समय] से मेरे मनमें इस अंचलकी यात्रा करनेका इरादा जम गया था। मैं इस ध्येयको पूर्ण करनेके साधन खोजता रहा।

तेरह अप्रैल, १८८८ को मैं भावनगरसे छुट्टियाँ मनानेके लिए राजकोट गया। पन्द्रह दिनकी छुट्टियोंके बाद मेरे बड़े भाई और मैं पटवारीसे मिलने गये। लौटने पर मेरे भाईने कहा: "चलो, मावजी जोशीसे[२] मिल आयें।" इसलिए हम उनके यहाँ गये। मावजी जोशीने साधारण कुशल- प्रश्न करनेके बाद भावनगर में मेरी पढ़ाईकी बाबत कुछ पूछताछ की। मैंने उन्हें साफ-साफ बताया कि मेरा पहले वर्ष में परीक्षा पास हो जाना मुश्किल ही है। मैंने यह भी कहा कि मुझे पाठ्यक्रम बहुत कठिन मालूम होता है। यह सुनकर उन्होंने मेरे भाईको सलाह दी कि वे, जैसे भी सम्भव हो, मुझे बैरिस्टरी पढ़नेके लिए लंदन भेज दें। उन्होंने बताया कि खर्च सिर्फ ५,००० रुपये आयेगा। "यह अपने साथ थोड़ी उड़दकी दाल ले जाये। वहाँ अपने लिए खुद कुछ खाना बना लिया करेगा। इससे कोई धार्मिक आपत्ति न होगी। यह बात किसीको बताओ मत। कोई छात्रवृत्ति पानेका प्रयत्न करो। जूनागढ़ और पोरबन्दर

 
  1. जब गांधीजीके सम्बन्धी और साथी श्री छगनलाल गांधी १९०९ में पहली बार लंदन जा रहे थे, उस समय गांधीजीने उन्हें अपनी लंदन में लिखी हुई दैनन्दिनी दे दी थी। दैनन्दिनी लगभग १२० पृष्ठोंकी थी। श्री छगनलालने १९२० में वह महादेव देसाईको दे दी थी। परन्तु देनेके पहले उन्होंने एक नहीमें मूल दैनन्दिनीके लगभग बीस पृष्ठोंकी नकल तैयार कर ली थी। शेष १०० पृष्ठोंमें इन बीस पृष्ठोंके समान सिलसिलेवार सामग्री नहीं थी, बल्कि १८८८ से १८९१ तक के लंदनवासमें दिन-प्रतिदिन जो घटनाएँ होती थीं उनका उल्लेख मात्र था। श्री छगनलालकी यह प्रति मामूली संपादकीय सुधारोंके बाद यहाँ उद्धृत की जा रही है। गांधीजीने दैनन्दिनी अंग्रेजीमें लिखी थी। उसे लिखनेके समय वे केवल १९ वर्ष के थे।
  2. गांधी- कुटुम्बके मित्र, पुरोहित और सलाहकार।