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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो मुझे अपने चाचाकी अनुमति प्राप्त करनी थी; दूसरे, श्री लेलीको[१] कुछ आर्थिक सहायता पानेकी अर्जी देनी थी; और अन्तमें, अगर राज्यसे छात्रवृत्ति न मिले तो, परमानन्दभाईसे[२] कहना था कि वे मुझे कुछ रुपया दें। सबसे पहले मैंने चाचासे भेंटकी और उनसे पूछा कि उन्हें मेरा लंदन जाना पसन्द है या नहीं। जैसी कि मैंने अपेक्षा भी की ही थी, चाचाने स्वाभाविक रूपसे मुझसे लंदन जानेके फायदे गिनानेको कहा। मैंने अपनी शक्तिके अनुसार फायदे गिना दिये। तब उन्होंने कहा "बेशक, इस पीढ़ीके लोग इसे बहुत पसन्द करेंगे, परन्तु जहाँतक मेरी बात है, मैं पसन्द नहीं करता। फिर भी, हम बादमें विचार करेंगे।" इस प्रकारके उत्तरसे मुझे निराशा नहीं हुई। कमसे-कम मुझे इतना तो सन्तोष हुआ कि कुछ भी हो, दिलसे वे बातको पसन्द करते हैं। और बादमें उनके कामसे सिद्ध हो गया कि मैंने जो सोचा था वह ठीक था।

दुर्भाग्य से श्री लेली पोरबन्दरमें नहीं थे। सच ही है 'छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति।' श्री लेली जिलेके दौरेपर गये थे और वहाँसे लौटनेपर वे तुरन्त छुट्टीपर चले जाने-वाले थे। मेरे चाचाने मुझे अगले रविवारतक उनकी प्रतीक्षा करनेकी सलाह दी। उन्होंने कहा, अगर वे तबतक न लौटे तो जहाँ-कहीं भी होंगे, वहाँ उनके पास तुम्हें भेज दूंगा। परन्तु मेरे सौभाग्यसे वे रविवारको जिलेके दौरेसे लौट आये। फिर तय हुआ कि मैं उनसे सोमवारको मिलूँ और तदनुसार मैं उनसे मिला। जीवनमें किसी अंग्रेज सज्जनसे मुलाकातका यह मेरा पहला ही अवसर था। इसके पहले मैंने अंग्रेजों के सामने जानेका साहस कभी नहीं किया था। परन्तु लंदन जानेकी धुनने मुझे बेधड़क कर दिया था। मैंने गुजरातीमें उनके साथ थोड़ी-सी बातें कीं। वे बहुत जल्दीमें थे। वे मुझसे अपने बँगलेके ऊपरी खंडके जीनेपर चढ़ते चढ़ते मिले। उन्होंने कहा कि पोरबन्दर रियासत बहुत गरीब है, इसलिए वह तुम्हें कोई आर्थिक सहायता नहीं दे सकती। फिर भी, उन्होंने कहा: पहले तुम भारतमें स्नातक बन जाओ; फिर मैं सोचूँगा कि तुम्हें कोई आर्थिक सहायता दी जा सकती है या नहीं। उनके ऐसे उत्तरसे मैं सचमुच बिलकुल निराश हो गया। मैंने उनसे ऐसे जवाबकी अपेक्षा नहीं की थी।

अब परमानन्दभाईसे पाँच हजार रुपये माँगनेकी बात रही। उन्होंने कहा, अगर तुम्हारे चाचा तुम्हारा लन्दन जाना पसन्द करें तो मैं खुशीसे रुपये दे दूँगा। मैंने इसे जरा कठिन ही समझा। परन्तु मैं चाचाकी अनुमति पा लेनेपर तुला हुआ था। मैं जब उनसे मिला उस समय वे किसी काममें व्यस्त थे। मैंने उनसे कहा — 'चाचाजी, अब बताइए, आप मेरे लन्दन जानेके बारेमें सचमुच क्या सोचते हैं? मेरा यहाँ आनेका मुख्य उद्देश्य आपकी अनुमति हासिल करना ही है।" उन्होंने उत्तर दिया — "मैं अनुमति नहीं दे सकता। क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मैं तीर्थ-यात्रा पर जा रहा हूँ? फिर अगर मैं कहूँ कि मुझे लोगोंका लन्दन जाना पसन्द है, तो

 
  1. ब्रिटिश एजेंट, जो राजकुमारकी नाबालिगीके समय पोरबन्दर राज्यका प्रबन्ध करता था।
  2. गांधीजीके चचेरे भाई।