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सम्पूर्ण गांधी वाङ्गमय

थे। कुछ लोग मुझे लंदन न जाने के लिए समझाते, कुछ जानेकी सलाह देते। कभी-कभी मेरी माँ भी न जानेको कहतीं। और बड़ी अजीब बात तो यह थी कि मेरे भाई भी अकसर अपना इरादा बदलते रहते थे। इसलिए मैं त्रिशंकुकी स्थितिमें था। परन्तु सब लोग जानते थे कि एक बार किसी चीजको शुरू करके मैं छोड़ेंगा नहीं। इसलिए वे सब शान्त रहे। इसी बीच मेरे भाईने मेघजीभाईके वादेके बारेमें उनका मन टटोलनेकी बात मुझसे कही। परिणाम अवश्य ही बिलकुल निराशाजनक हुआ और उस समयसे वे सदा शत्रुवत् व्यवहार करते रहे। वे हर किसीके सामने मेरी बुराई करते थे। परन्तु मैं उनके तानोंकी पूरी तरह उपेक्षा करता रहा। मेरी अत्यन्त प्यारी माँ को इसके लिए उनपर बहुत क्रोध आया और कभी-कभी वे बेचैन भी हो उठती थीं। परन्तु मैं सरलतासे उनको धैर्य बँधाने में सफल हो जाता। और मुझे यह महसूस करके सन्तोष है कि मैं अकसर उनको शान्त कर पाता था। और जब-जब वे, मेरे लिए आँसू बहातीं, अकसर मैं उन्हें भरपूर हँसा तक पाता था। आखिर कर्नल वाट्सन आये। मैं उनसे मिला । उन्होंने कहा -- "मैं इस बारेमें सोचूंगा।" मगर मुझे उनसे कभी कोई मदद नहीं मिली। यह कहते हुए मुझे अफसोस होता है कि उनके पाससे परिचयकी एक चिट्ठी पाना भी मेरे लिए कठिन हुआ। उन्होंने बड़े दर्प-भरे स्वरमें कहा था कि वह एक लाख रुपयेकी चीज है। अब तो सचमुच उसे याद करके मुझे हंसी आती है।

फिर, मेरी विदाईका एक दिन निश्चित हुआ। पहले यह तिथि चार अगस्त निश्चित की गई थी। अब सारा मामला नाजुक स्थितिमें पहुँच गया। मैं इंग्लैंड जाने-वाला हूँ, यह समाचार अखबारोंमें छप गया था। कुछ लोग मेरे भाईसे मेरे जाने के बारे में हमेशा पूछा करते थे। आखिर में इस समय भाईने मुझसे जानेका इरादा छोड़ देनेके लिए कहा । मगर मै तो माननेवाला नहीं था। तब वे राजकोटके ठाकुरसाहबसे मिले और उन्होंने उनसे कुछ आर्थिक सहायता देनेका अनुरोध किया। परन्तु उनसे कोई सहायता नहीं मिली। फिर मैंने ठाकुरसाहब और कर्नल वाट्सनसे आखिरी बार मुलाकात की। पहलेसे एक फोटो प्राप्त हुई, दूसरेसे परिचयकी एक चिट्ठी। यहाँ इतना तो लिखना ही पड़ेगा कि इस समय मुझे जो जबरदस्त खुशामद करनी पड़ी उससे मेरे मनमें गुस्सा भर गया था। अगर मुझे अपने भोले-भाले भाईका खयाल न होता तो मैं ऐसी घोर खुशामदका आश्रय कदापि न लेता। आखिर १० अगस्त का दिन आया और मेरे भाई, शेख महताब, श्री नाथूभाई, खुशालभाई और मैं रवाना हुए।

मैं राजकोटसे बम्बईके लिए रवाना हुआ। वह शुक्रवारकी रात थी। मुझे मेरे स्कूलके साथियोंने एक मानपत्र दिया था। जब मानपत्रका उत्तर देने खड़ा हुआ उस समय मैं बहुत उद्विग्न था। मुझे जो-कुछ बोलना था उसे आधा बोलनेके बाद मैं काँपने लगा। आशा है कि भारत लौटने के बाद फिर वैसा न होगा। मुझे चाहिए कि भाषण देनेके पहले उसे लिख लिया करूँ। उस रातको मुझे विदा करनेके लिए बहुत-से

१.राजकोटके राजा।

२.देखिए पृष्ठ १।