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लन्दन-दैनन्दिनी

करता था। विलायती पाखानों की व्यवस्था भारतीय यात्रियों को ताज्जुब में डालने वाली थी। वहां पानी नहीं होता, कागज के टुकड़ों से काम चलाना पड़ता है।

लगभग पाँच दिन तक समुद्र-यात्रा का आनन्द लेने के बाद हम अदन पहुँचे। इस बीच हमें कहीं भूमिका एक टुकड़ा या पहाड़ की कोई रेखा भी दिखाई नहीं दी। हम सब समुद्र-यात्रा के विरस एक-सुरेपन से ऊब गये थे और जमीन देखने को आतुर थे। आखिर छठवें दिन सवेरे हमें भूमि दिखलाई पड़ी। सब आनन्दित और प्रफुल्ल दीखने लगे। सुबह के लगभग ग्यारह बजे जहाज ने अदन में लंगर डाला । कुछ लड़के छोटी-छोटी नावें लेकर आ गये। वे बड़े अच्छे तैराक थे। कुछ यूरोपीयों ने पानी में पैसे फेंक दिये। इन लड़कों ने गहरी डुबकियां लगाकर उन पैसों को निकाल लिया। काश, मैं भी इस तरह तैर सकता! वह दृश्य बड़ा सुहावना था। लगभग आधे घंटेतक उसका आनन्द लेने के बाद हम अदन देखने गये। मैं कह देना चाहता हूँ कि हमने उन लड़कों को पैसे निकालते हुए सिर्फ देखा; खुद हमने एक पाई भी नहीं फेंकी। इस दिन से हमें इंग्लैंडके खर्च की कल्पना होने लगी। हम तीन व्यक्ति थे, और नाव का भाड़ा दो रुपये देना पड़ा। किनारा तो मुश्किल से एक मील रहा होगा। हम १५ मिनट में किनारे पर पहुँच गये। बादमें हम ने एक गाड़ी की। हम अदन की एक-मात्र देखने लायक चीज पानी घर देखने जाना चाहते थे; परन्तु दुर्भाग्य से समय हो गया और हम जा नहीं सके। हम ने अदन का कैम्प देखा। अच्छा था। इमारतें अच्छी थीं। आम तौर पर दुकानें ही थी। इमारतों की बनावट सम्भवत: वही थी जो राजकोट के बँगलों की और खास तौर पर पोलिटिकल एजेंट के नये बँगले की है। मैंने कोई कुआँ या ताजे पानी का कोई दूसरा स्थान नहीं देखा। शायद वहाँ ताजा पानी सिर्फ तालाबों से आता है। धूप बड़ी तेज थी। मैं पसीने में डूबा हुआ था। इसका कारण यह था कि हम लाल सागर से बहुत दूर नहीं थे। मैंने एक भी पेड़ या हरा पौधा नहीं देखा और इससे मुझे और भी आश्चर्य हुआ। लोग खच्चरों या गधों पर सवारी करते थे। अगर हम चाहते तो खच्चर किराये पर ले सकते थे। कैम्प पहाड़पर है। जब हम लौटे तो नाव वालों ने बताया कि जिन लड़कोंके बारेमें मैंने ऊपर लिखा है वे कभी-कभी घायल हो जाते है। समुद्र के जानवर कभी किसी के पैर और कभी किसी के हाथ काट लेते हैं । परन्तु फिर भी, वे लड़के इतने गरीब है कि अपनी छोटी-छोटी नावों पर बैठ कर आ ही जाते हैं। हम तो उन नावों पर बैठने का साहस ही नहीं कर सकते। हममें से हर एक को एक-एक रुपया गाड़ी-भाड़ा देना पड़ा। लंगर १२ बजे दुपहर को उठा और हम अदन से रवाना हो गये। परन्तु उस दिन से हमें रोज ही धरती का कोई-न-कोई हिस्सा दिखलाई देता रहा ।

शाम को हम लाल सागर में प्रविष्ट हुए। वहाँ गर्मी महसूस होने लगी। मगर वह मेरी समझ में, बम्बई में कुछ लोग जैसी बताते थे, वैसी भून देनेवाली गर्मी नहीं थी। बेशक कोठरियों में वह असह्य थी। आप धूपमें रह नहीं सकते, कोठरी में कुछ मिनट भी रहना पसन्द नहीं करेंगे; मगर छतपर हों तो आपको ताजी हवाके सुखद झकोरे मिलते ही रहेंगे। कमसे-कम मुझे तो मिले। करीब-करीब सभी यात्री