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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ल्टर देखने की बहुत इच्छा थी, इसलिए मैं सुबह जल्दी उठा और मैंने श्री मजमूदार-को जगाकर उनसे पूछा कि वे मेरे साथ तटपर जायेंगे या नहीं। उन्होंने कहा कि जायेंगे। तब श्री मजीद के पास जाकर मैंने उन्हें जगाया। हम तीनों तटपर गये। हमारे पास सिर्फ डेढ़ घंटे का समय था। तड़का होने के कारण सब दूकानें बन्द थीं। कहा जाता है कि जिब्राल्टर तट-कर से मुक्त बन्दरगाह है, इसलिए वहाँ सिगरेट आदि धूम्रपानकी वस्तुएँ बहुत सस्ती मिलती है। जिब्राल्टर एक पहाड़ीपर बना हुआ है। शिखरपर किला है। मगर हम उसे देख नहीं पाये, इसका बहुत अफसोस रहा। मकान कतारों में हैं। पहली कतार से दूसरी कतार में जाने के लिए कुछ सीढ़ियाँ चढ़ना जरूरी होता है। मुझे वह बहुत पसन्द आया। रचना बहुत ही सुन्दर है। सड़कें पटी हुई हैं। समय न होने से हम जल्दी लौटने के लिए लाचार थे। जहाज साढ़े आठ बजे सुबह रवाना हो गया।

तीन दिन बाद हम ११ बजे रात को प्लीमथ पहुँच गये। अब ठीक सर्दीका समय आ गया था। हर एक यात्री कहता था कि तुम लोग मांस और शराब के बिना मर जाओगे। मगर ऐसा हुआ तो नहीं। ठंड तो सचमुच बहुत थी। हमें तूफान की सूचना भी दी गई थी, मगर हमें वह देखने को मिला नहीं। दरअसल मैं उसे देखने को बहुत उत्सुक था, मगर वह अवसर नहीं आया। रात होने के कारण हम प्लीमथ में कुछ भी देख नहीं सके। घना कुहरा था। आखिरकार जहाज लंदन के लिए रवाना हो गया। २४ घंटे में हम लंदन पहुँचे। जहाज छोड़कर हम टिलबरी रेलवे स्टेशन से २७ अक्तूबर', १८८८ के ४ बजे सायंकाल विक्टोरिया होटल में पहुँच गये।

शनिवार, २७ अक्तूबर, १८८८ से शुक्रवार, २३ नवम्बर

श्री मजमूदार, श्री अब्दुल मजीद और मैं विक्टोरिया होटल में पहुँचे । श्री अब्दुल मजीद ने विक्टोरिया होटल के आदमी से कुछ शान दिखाते हुआ कहा कि वह हमारे गाड़ी वाले को मुनासिब किराया दे दे। श्री अब्दुल मजीद अपने आपको बहुत बड़ा समझते थे, लेकिन मैं यहाँ लिख दूं कि वे जो कपड़े पहने हुए थे वे शायद होटलके उस छोकरे के कपड़ोंसे भी खराब थे। उन्होंने सामान को भी कोई परवाह नहीं की और, जैसे कि लंदन में बहुत दिनोंसे रह रहे हों, वे होटल के अन्दर चले गये। होटल के ठाट-बाट देखकर मैं चकरा गया। मैंने अपनी जिन्दगी में इतनी शान-शौकत कभी नहीं देखी थी। मेरा काम चुपचाप अपने दोनों मित्रों के पीछे-पीछे चलना भर था। सभी जगहों में बिजली की बत्तियाँ थीं। हमें एक कमरे में ले जाया गया। श्री मजीद एकदम अन्दर चले गये। मैनेजर ने उसी समय उनसे पूछा कि आपको दूसरा खंड पसन्द होगा या नहीं। श्री मजीद ने रोजाना भाड़े के बारे में पूछताछ करना अपनी शान के खिलाफ समझकर कह दिया--हाँ। मैनेजर ने फौरन प्रत्येक के नाम ६ शिलिंग रोजका बिल काटकर,


१ और २ साधन-सूत्र में तिथि २८ है। उस तिथिको रविवार था। स्पष्ट हो यह एक चूक है। गांधीजीने सत्यना प्रयोगो अथवा आत्मकथा, भाग १, अध्याय १३ में लिखा है कि वह शनिवार के दिन लंदन पहुंचे थे, जो २७ अक्तूबरको पड़ता है।