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फ्रेडरिक लेलीको लिखे पत्रका मसविदा

एक छोकरे को हमारे साथ भेज दिया। मैं सारे समय मन ही मन हँसता रहा । अब हमें एक 'लिफ्ट' के जरिये दूसरे खंड में जाना था। मैं नहीं जानता था कि लिफ्ट क्या है। छोकरे ने कोई चीज छुई जिसे मैंने दरवाजे का ताला समझा। परन्तु, जैसा कि मुझे बाद में मालूम हुआ, वह एक घंटी थी, जो उसने लिफ्ट के छोकरे को यह जताने के लिए बजाई थी कि वह लिफ्ट ले आये। दरवाजा खोला गया और मैंने सोचा कि यह कोई कमरा है, जिसमें हमें कुछ देर ठहरना होगा। लेकिन हमें उससे दूसरे खंड में ले जाया गया और इसपर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ।'

अंग्रेजी प्रति से।

५.फ्रेडरिक लेलोको लिखे पत्रका मसविदा

लंदन दिसम्बर, १८८८

प्रिय महोदय,

आपको मेरा वह पत्र देखकर जो मैंने आप से मिलने का अवसर पाने पर आपको दिया था मेरा ध्यान आ जायेगा। आपने उसे सुरक्षित रखने का वादा किया था।

उस समय मैंने इंग्लैंड आने के लिए आपसे कुछ आर्थिक सहायता माँगी थी। परन्तु दुर्भाग्यवश आप जाने की जल्दी में थे। इसलिए मुझे जो-कुछ कहना था वह सब कहने के लिए काफी समय नहीं मिला।

मैं उस समय इंग्लैंड आने के लिए बहुत अधीर था। इसलिए मेरे पास जो थोड़ा-बहुत पैसा था उसे लेकर मैं ४ सितम्बर, १८८८ को भारतसे रवाना हो गया। मेरे पिता हम तीनों भाइयों के लिए जो कुछ छोड़ गये थे वह तो बहुत थोड़ा था। मेरे भाई बहुत कठिनाई से मेरे लिए लगभग ६६६ पौंड निकाल सके। मैंने माना कि इतनी रकम लंदन में तीन वर्ष रहने के लिए काफी होगी। और मैं इंग्लैंड में कानून का अध्ययन करने के लिए भारतसे रवाना हो गया। भारत में रहते हुए मुझे मालूम हो गया था कि लंदन में रहना और शिक्षा प्राप्त करना बहुत खर्चीला होता है। परन्तु यहाँ दो माह रहकर मैंने अनुभव किया है कि भारत में जितना मालूम हुआ था खर्च उससे भी बहुत ज्यादा है।

यहाँ आराम से रहने और अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए मुझे ४०० पौंडकी और जरूरत होगी। मैं पोरबन्दर का निवासी हूँ। ऐसी हालत में वही एक स्थान है, जिससे मैं इस प्रकार की सहायता को अपेक्षा कर सकता हूँ।

राणा साहब के भूतपूर्व शासनमें शिक्षा को बहुत कम प्रोत्साहन दिया जाता था। परन्तु अब हमारा यह अपेक्षा करना स्वाभाविक ही है कि अंग्रेजों के शासन-प्रबंध में

१.शेष भाग उपलब्ध नहीं है।

२.गांधीजी ने इसे अपने बड़े भाई लक्ष्मीदास के पास उनकी सम्मति के लिए भेजा था।

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