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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शिक्षाको प्रोत्साहन मिलेगा। मैं उन लोगोंमें हूँ जो ऐसे प्रोत्साहनका लाभ उठा सकते हैं।

इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप मुझे कुछ आर्थिक सहायता देनेकी कृपा करेंगे और इस तरह मेरी बहुत बड़ी जरूरत पूरी करके मुझे आभारी बनायेंगे।

मैंने अपने भाई लक्ष्मीदास गांधीको [रकम] ले लेनेके लिए लिखा है। मैं उन्हें एक पत्र भेज रहा हूँ कि अगर जरूरी हो तो वे खुद आपसे मिल लें। मुझे विश्वास है कि आप मेरी प्रार्थना स्वीकार करनेकी कृपा करेंगे।

परम आदरके साथ,

आपका,

मो० क० गांधी'

इसे मैंने तीन हफ्ते हुए लिख छोड़ा था, और इसपर विचार करता रहा हूँ। परन्तु अब इस बीच में इस पत्रका जवाब आ जायेगा, ऐसा मानकर यह मसविदा आपको भेज रहा हूँ। इसमें मैंने पूरी मददकी माँग नहीं की है, क्योंकि वह अनुचित मानी जायेगी। साथ ही, वे यह भी सोचेंगे कि अगर हमारे भरोसे गया होता, तब तो मदद लिए बिना न जाता। इसलिए यहाँ आनेके बाद यह सोचकर कि ज्यादा पैसेकी जरूरत होगी, बाकी पैसेकी मदद मांगी है। बन्धन आदि स्वीकार करनेकी बात लिखी ही नहीं, क्योंकि वह लिखनेकी कोई जरूरत नहीं थी। थोड़ी मददके लिए बंधन स्वीकार करना ठीक नहीं। इसी तरह यदि ...

[अंग्रेजी व गुजरातीसे]

महात्मा, खंड १; तथा एक फोटो-नकलसे ।

६. पत्र: कर्नल जे० डब्ल्यू० वॉट्सनको

[दिसम्बर, १८८८]

कर्नल जे० डब्ल्यू० वॉट्सन

पोलिटिकल एजेंट

काठियावाड़

प्रिय महोदय,

मुझे इस देशमें आये लगभग छ: या सात सप्ताह हो गये हैं। इस बीच मेरा रहना-सहना ठीक तरहसे जम गया है और मैंने अपनी पढ़ाई काफी अच्छी तरह शुरू कर दी है। मैं अपनी कानूनी शिक्षाके लिए 'इनर टेम्पल' में भरती हुआ हूँ।

१. इसके बादका अंश गुजरातीमें है।

२. गुजरातीमें लिखा हुआ यह संदेश लक्ष्मीदास गांधोके नाम था। उपर्युक्त मसविदा इसके साथ मेजा गया था। पत्रका बाको हिस्सा उपलब्ध नहीं है।