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भारतीय अन्नाहारी-२

सकता है कि उन्हें कलेवा की जरूरत पड़ती होगी। परन्तु, जैसा कि ऊपर के विवरण- से स्पष्ट हो गया होगा, वे कलेवा नहीं करते और न दुपहर का साधारण भोजन ही करते हैं। पर निस्सन्देह कुछ पाठकों को आश्चर्य होगा कि वे अपने पहले भोजन के बाद नौ घंटों तक कुछ भी खाये बिना कैसे रहते हैं। इसके दो उत्तर हो सकते हैं पहला तो यह कि आदत, दूसरा निसर्ग है। कुछ लोगों का धर्म यह आदेश देता है और कुछ लोगों के धंधे तथा रीति-रिवाज उन्हें इसपर बाध्य करते है कि वे दिन में दो बारसे ज्यादा भोजन न करें। दूसरे, कुछ स्थानों को छोड़कर सारे भारत की आबहवा बहुत गर्म है। यह उपर्युक्त आदत का कारण हो सकता है; क्योंकि इंग्लैंड में भी देखा जाता है कि सर्दी के मौसम में भोजन की जितनी मात्रा आवश्यक होती है उतनी ही गर्मीके मौसम में आवश्यक नहीं होती। इंग्लैंड में जिस तरह भोजन का प्रत्येक पदार्थ अलग-अलग ग्रहण किया जाता है, वैसा भारतीय नहीं करते। वे अनेक पदार्थों को एक-साथ मिला देते हैं। कुछ हिन्दुओं में तो सब पदार्थों को एक साथ मिला लेना धर्म है। इसके अतिरिक्त, भोजनका प्रत्येक व्यंजन बड़े विस्तारपूर्वक बनाया जाता है। सच तो यह है कि भारतीय सादी उबली हुई शाक-सब्जियाँ खाने में विश्वास नहीं करते। वे उनमें अच्छी खासी मात्रा में नमक, मिर्च, हल्दी, राई, लौंग और तरह-तरहके दूसरे मसाले डालकर उन्हें स्वादिष्ट बना लेते हैं। अंग्रेजी में उन सारे मसालों के नाम दवाइयों के नामोंमें ही मिल सकते हैं। उनके बाहर पाना कठिन है।

पहले भोजन में साधारणतः रोटियाँ या चपातियाँ, जिनके बारेमें बादमें अधिक लिखा जायेगा, थोड़ी-सी दाल, जैसे अरहर या सेम आदिकी, और अलग-अलग या एक-साथ पकी हुई दो या तीन हरी सब्जियाँ होती है। इसके बाद पानी में पकी हुई और मसालों से स्वादिष्ट बनी दाल और चावल मिलाकर खाते हैं। अन्तमें कुछ लोग दूध या चावल या केवल दूध या दही या, विशेषतः गर्मीके दिनोंमें, छाँछ भी लेते हैं।

दूसरे भोजन या ब्यालू में अधिकतर पहले भोजन के ही पदार्थ होते हैं। परन्तु उनकी मात्रा और शाक-सब्जियों की संख्या कम होती है। दूधका उपयोग अधिक मात्रामें किया जाता है। यहाँ पाठकों को याद दिला दूं कि यही भारतवासियों का निश्चित भोजन नहीं है। यह भी नहीं सोचना चाहिए कि यही पदार्थ सारे भारत के और सब वर्गोंके आहार को सूचित करते हैं। उदाहरण के लिए, इन आहारों में मिठाई नहीं गिनाई गई, जब कि सम्पन्न वर्गों में हफ्ते में एक बार तो मिठाई जरूर ही खाई जाती है। इसके अतिरिक्त, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, बम्बई प्रदेश में चावल से गेहूँ अधिक खाया जाता है, बंगाल में गेहूँ से अधिक उपयोग चावलका होता है। यही बात तीसरे अपवाद के बारे में भी है, जिससे यह नियम सिद्ध हो जाता है कि मजदूर-वर्गका आहार उपर्युक्त आहार रसे भिन्न है। यदि सब प्रकार के आहारों की चर्चा की जाये तो बहुत विस्तार हो जायेगा और वैसा करनेसे, लेखकी सारी रोचकता समाप्त हो जानेकी आशंका है।

रसोईके कामोंमें मक्खन या यों कहिए कि घीका जितना उपयोग इंग्लैंड या सम्भवतः सारे यूरोपमें किया जाता है उससे भारतमें कहीं अधिक होता है। और