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भारतीय अन्नाहारी-४

१६-१७ वर्ष के पति से सन्तानोत्पत्ति हुई है। क्या बलवान से बलवान शरीरपर भी इन विवाहों का बुरा असर नहीं पड़ेगा

अब जरा कल्पना कीजिए कि इस प्रकार के विवाहों से उत्पन्न सन्तति कितनी दुर्बल होगी। फिर खयाल कीजिए कि उन चिन्ताओं का, जो ऐसे दम्पती को ढोनी पड़ेंगी। मान लीजिए कि किसी ११ वर्ष के बालक का विवाह लगभग उसी उम्र की बालिका के साथ कर दिया जाता है। अब, लड़का तो जानता ही नहीं कि पति बनने-का अर्थ क्या है, उसे जानना चाहिए भी नहीं, फिर भी उसके एक पत्नी हो जाती है, जो जबरन् उसके गले मढ़ दी गई है। वह अपने स्कूल तो जाता ही है और स्कूल की बेगार के साथ-साथ उसे अपनी बाल-पत्नी की देखभाल भी करनी पड़ती है। उसका भरण-पोषण तो नहीं करना पड़ता, क्योंकि भारत में विवाहित लड़कों का अपने माता-पिता से अलग हो जाना जरूरी नहीं होता। हाँ, आपस में बनती न हो तो बात अलग होती है। परन्तु भरण-पोषण छोड़कर उन्हें अपनी पत्नियों के लिए सब-कुछ करना पड़ता है। फिर विवाह के लगभग छ: वर्ष बाद, मान लीजिए, उसको लड़का हो गया। शायद उस समयतक उसकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई। और उसे सिर्फ अपने ही नहीं, बल्कि अपनी पत्नी और बच्चे के भी भरण-पोषणके लिए रुपया कमानेकी चिन्ता लग गई, क्योंकि वह अपना सारा जीवन अपने पिताके साथ व्यतीत करनेकी आशा तो नहीं कर सकता। और मान लिया जाये कि वह पिताके आश्रय में रहता ही है, तो भी उससे इतनी अपेक्षा तो की ही जायेगी कि वह अपनी पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण में कुछ हाथ बँटाये। तब क्या अपने कर्तव्य का ज्ञान-मात्र ही उसके मनको खा-खाकर स्वास्थ्य को कमजोर न कर देगा? क्या कोई यह कहनेका साहस कर सकता है कि इससे तगड़े से तगड़ा शरीर भी बरबाद न हो जायेगा? परन्तु यह तर्क बखूबी किया जा सकता है कि जिसका उदाहरण दिया गया है, अगर वह लड़का मांसाहारी होता तो जितना पुष्ट रहा उससे अधिक पुष्ट रहता। इस दलील का उत्तर उन क्षत्रिय राजाओंके जीवन से मिल सकेगा, जो कि मांसाहार करते हुए भी व्यभिचार के कारण बहुत दुर्बल पाये जाते हैं।

फिर भारत के ग्वाले इस बातके अच्छे उदाहरण हैं कि जहाँ दूसरे प्रतिकूल तत्त्व काम नहीं करते, वहाँ भारतीय अन्नाहारी कितने मजबूत हो सकते हैं। भारत का ग्वाला भीमसेनी शरीर और बहुत अच्छे गठनवाला होता है। अपनी मोटी, मजबूत लाठी से वह किसी भी तलवारवाले साधारण यूरोपीय का सामना कर सकता है। ग्वालों की ऐसी कहानियों के उल्लेख मिलते हैं जिनमें उन्होंने अपनी लाठियोंसे ही शेरों और बाघोंको मारा या भगाया है। एक मित्र ने एक दिन कहा था--परन्तु यह उदाहरण तो उन लोगों का है जो असभ्य और प्राकृतिक अवस्थामें रहते हैं। समाजकी वर्तमान नितान्त कृत्रिम अवस्थामें आपको सिर्फ गोभी और मटरसे कुछ अधिककी जरूरत है। आपका ग्वाला तो बुद्धिहीन है, वह किताबें नहीं पड़ता, आदि ।"इसका एकमात्र जवाब यह था, और है, कि अन्नाहारी ग्वाला मांसाहारी ग्वाले या गड़रिये से अधिक मजबूत नहीं तो उसके बराबर तो होगा ही। इस प्रकार एक वर्गके