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कुछ त्योहार-३

मन्दिरके बाहरका दृश्य बहुत आह्लादकारी नहीं होता। वहाँ आपको होलीके एक पखवारे पहलेसे अश्लील भाषाके सिवा कुछ नहीं मिलेगा। छोटे-छोटे गाँवोंमें तो स्त्रियोंका बाहर निकलना ही कठिन होता है. उनपर कीचड़ फेंक दिया जाता है और अश्लील आवाजकशी की जाती है। यही व्यवहार पुरुषोंके साथ भी होता है और इसमें छोटे-बड़ेका कोई भेद नहीं माना जाता। लोग छोटी-छोटी टोलियाँ बना लेते हैं और फिर एक टोली दूसरी टोलीके साथ अश्लील भाषाके प्रयोग और अश्लील गीत गाने में स्पर्धा करती है। सभी पुरुष और बच्चे इन घृणास्पद स्पर्धाओंमें शामिल होते हैं। केवल स्त्रियाँ शामिल नहीं होती।

सच बात यह है कि इस पर्व में अश्लील शब्दोंका प्रयोग बुरी रुचिका परिचायक नहीं माना जाता । जहाँके लोग अज्ञानमें डूबे हुए हैं, उन स्थानोंमें एक-दूसरेपर कीचड़ आदि भी फेंका जाता है। लोग दूसरोंके कपड़ोंपर भद्दे शब्द छाप देते हैं। और कहीं आप सफेद कपड़े पहनकर बाहर निकल गये, तो अवश्य ही आपको कीचड़से सनकर वापस आना होगा। होलीके दिन यह सब अपनी चरम सीमापर पहुँच जाता है। आप अपने घरमें हों या बाहर हों, अश्लील शब्द तो आपके कानोंको पीड़ा पहुँचायेंगे ही। अगर आप कहीं किसी मित्रके घर चले गये तो मित्र जैसा होगा उसके अनुसार आप गंदे या खुशबूदार पानीसे जरूर ही नहला दिये जायेंगे।

संध्यासमय लकड़ियों या उपलोंका भारी ढेर लगाकर जलाया जाता है। ये ढेर अकसर बीस-बीस फुटके या इससे भी ऊँचे होते हैं। लकड़ियोंके ढूंठ इतने मोटे होते हैं कि उनकी आग सात-सात आठ-आठ रोजतक नहीं बुझती।

दूसरे दिन लोग इस आगपर पानी गर्म करके उससे स्नान करते हैं। अबतक तो मैंने यही बताया है कि इस उत्सवका दुरुपयोग किस प्रकार किया जाता है। परन्तु सन्तोषकी बात है कि अब शिक्षाकी उन्नतिके साथ-साथ ये प्रथाएँ धीरे-धीरे किन्तु निश्चित रूपसे मिट रही हैं। जो जरा धनी और सुसंस्कृत होते हैं, वे लोग इस त्योहारको बहुत सुन्दर ढंगसे मनाते हैं। उनमें कीचड़की जगह रंगके पानी और सुवासित जलका उपयोग किया जाता है। लोटे भर-भरकर पानी फेंकनेके बदले पानी छिड़कना भर काफी होता है। वसन्ती रंगका इन दिनोंमें सबसे ज्यादा उपयोग होता है। वह नारंगी रंगके टेसूके फूलोंको उबाल कर बनाया जाता है। समर्थ लोग गुलाब-का जल भी काममें लाते हैं। मित्र और सम्बन्धी एक-दूसरेसे मिलते हैं, उनकी दावतें करते हैं और इस प्रकार उल्लासके साथ वसन्तका आनन्द लेते हैं।

होलीके ज्यादातर 'अन-होली' [अपावन ] त्योहारसे दिवालीके त्योहारमें अनेक दृष्टियोंसे सुन्दर भेद है। दिवालीका पर्व वर्षाके बाद ही शुरू हो जाता है। वर्षाकाल उपवासोंका काल भी होता है, इसलिए उसके बाद दिवालीके दिनोंके अच्छे-अच्छे भोजन तथा दावतें और भी अधिक आनन्दकारी बन जाती हैं। इसके विपरीत, होलीका त्योहार शीतकालके बाद आता है। शीतकाल सब प्रकारके पौष्टिक आहार करनेका मौसम होता है। होलीके दिनोंमें ऐसे भोजन छोड़ दिये जाते हैं। दिवालीके अत्यन्त पवित्र गीतोंके बाद होलीकी अश्लील भाषा सुनाई देती है। फिर दिवालीमें लोग सर्दीके कपड़े पहनना शुरू करते हैं, जब कि होलीमें उन्हें छोड़ देते हैं। दिवाली