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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कुछ भोजनको पकाना भी छोड़ देते हैं और कुछ फलों तथा कच्चे मेवोंपर भी निर्वाह करनेका प्रयत्न करते हैं।

अब मैं विभिन्न प्रकारके आहारोंका वर्णन करूँगा। परन्तु मैं मांसके आहारोंकी कोई चर्चा नहीं करूंगा; क्योंकि ये जहाँ उपयोगमें आते भी हैं, वहाँ भोजनके मुख्य पदार्थ नहीं हैं। भारत सबसे पहले एक कृषि-प्रधान देश है। और वह बहुत विशाल है। इसलिए उसमें पैदावारें भी अनेकानेक और भाँति-भाँतिकी होती हैं। यद्यपि भारत- में ब्रिटिश शासनकी नींव सन् १७४६ ई० में पड़ गई थी और यद्यपि अंग्रेजोंको भारत-का इसके बहुत पहलेसे ज्ञान था, फिर भी भारतीय आहारोंके बारेमें इंग्लैंडमें इतनी कम जानकारीका होना एक दयनीय बात है। कारण जाननेके लिए हमें बहुत दूर जानेकी जरूरत नहीं। भारत जानेवाले लगभग सभी अंग्रेज अपना रहन-सहनका तरीका कायम रखते हैं। वे उन चीजोंको पानेका आग्रह रखते है जो उन्हें इंग्लैंडमें सुलभ होती हैं। इतना ही नहीं, वे उन्हें उसी तरीकेसे पकवाते भी हैं। इन सब बातोंके कारणों तथा आशयोंकी मीमांसा करना मेरा काम नहीं है। खयाल तो यह था कि वे, भले केवल जिज्ञासावश ही क्यों न हो, लोगोंकी आदतोंको समझेंगे। परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। फलतः उनकी अड़ियल उपेक्षाका परिणाम यह देखनेको मिलता है कि बहुत-से अंग्रेज भारतीय आहारोंके अध्ययनके उत्तमोत्तम अव- सर खो बैठे हैं। भोजनके पदार्थोके विषयपर लौटें तो भारतमें पैदा होनेवाले अनेक प्रकारके अनाज ऐसे हैं जिनका ज्ञान यहाँ बिलकुल नहीं है।

फिर भी गेहूँका महत्त्व, बेशक, यहाँके समान वहाँ भी सबसे अधिक है। फिर बाजरा (जिसे आंग्ल-भारतीय लोग 'मिलेट' कहते हैं), ज्वार, चावल आदि हैं। इनको मुझे रोटीका अनाज कहना चाहिए, क्योंकि ये मुख्यतः रोटी बनानेके काममें आते हैं। गेहूँ निस्सन्देह बड़े पैमानेपर काममें आता है। परन्तु वह अपेक्षाकृत महँगा है, इसलिए गरीब लोग उसकी जगह बाजरा और ज्वार काममें लाते हैं। दक्षिणी और उत्तरी प्रदेशोंमें ऐसा बहुत ज्यादा है। दक्षिणी प्रदेशोंके बारेमें सर डब्ल्यू॰ डब्ल्यू० हंटरने' अपने भारतीय इतिहासमें लिखा है : "साधारण लोगोंका आहार मुख्यतः ज्वार, बाजरा और रागी है।" उत्तरके बारेमें वे कहते हैं: "आखिरी दो (अर्थात् ज्वार और बाजरा) जनसाधारणके आहार है। चावल सिर्फ आबपाशीवाले खेतोंमें ही बोया जाता है और उसे धनी लोग खाते हैं। ऐसे लोगोंका मिलना जरा भी गैर-मामूली नहीं होता, जिन्होंने कभी ज्वार चखी ही नहीं। ज्वारके साथ, गरीबोंका आहार होनेके कारण, एक प्रकारका आदर जुड़ गया है। विदाईमें अभिवादनके तौर पर “गुडबाई" कहनेके बजाय भारतमें गरीब लोग 'ज्वार' कहते हैं। विस्तार

१. विलियम विल्सन हंटर (१८४०-१९००); भारतमें २५ वर्षतक सरकारी सेवाको; अनेक पुस्तकें लिखीं जिनमें इंडियन एम्पायर भी एक थी; १४ खण्डोंमें इम्पीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया तैयार किया। वाइसरायको विधान परिषदके सदस्य (१८८१-८७)। भारतसे निवृत्त होनेपर कांग्रेसको ब्रिटिश कमेटीके सदस्य बने और १८९० के बादसे भारतीय मामलों के बारे में टाइम्सके लेखक ।

२. ईश्वर तुम्हारे साथ हो! खुदा हाफिज !