१८. भाषण : विदाई भोजमें'
११ जून, १८९१
यद्यपि वह एक प्रकारसे विदाई-भोज था, फिर भी वहाँ दुःखका कोई चिह्न नहीं था; क्योंकि सब यही अनुभव कर रहे थे कि यद्यपि श्री गांधी भारत लौट रहे है, वे वहाँ जाकर अन्नाहारके पक्षमें और भी अधिक काम करेंगे। और इस समय अधिक उचित यह है कि व्यक्तिगत विछोहपर शोक प्रकट करने के बजाय उन्हें कानूनी अध्ययनको समाप्ति और सफलतापर बधाई दी जाये।...
समारोहकी समाप्तिपर श्री गांधीने एक सुसंस्कृत भाषण द्वारा उपस्थित सज्जनोंका स्वागत किया, हालाँकि भाषण देते समय वे कुछ घबड़ा रहे थे। उन्होंने कहा कि इंग्लैंड में मांस-त्यागकी बढ़ती हुई वृत्ति देखकर उन्हें हर्ष हो रहा है। उन्होंने यह बताते हुए कि लंदनकी वेजिटेरियन सोसाइटीके सम्पर्कमें वे किस प्रकार आये, हृदयस्पर्शी भाषामें बताया कि श्री ओल्डफील्डके वे कितने ऋणी है।...
उन्होंने यह आशा प्रकट की कि फेडरल यूनियनका कोई अगला अधिवेशन भारतमें किया जायेगा।
[अंग्रेजीसे]
वेजिटेरियन, १३-६-१८९१
१९. भेंट: वेजिटेरियन' के प्रतिनिधिसे'-१
श्री गांधीसे पहला प्रश्न यह किया गया --इंग्लैंड आने और कानूनी पेशा अख्तियार करने की प्रेरणा सबसे पहले आपको किस बातसे मिली?
एक शब्दमें--महत्त्वाकांक्षासे। मैंने सन् १८८७ में बम्बई विश्वविद्यालयसे मैट्रिककी परीक्षा पास की। बादमें भावनगर कालेजमें दाखिल हुआ। कारण यह था कि जबतक कोई बम्बई विश्वविद्यालयका स्नातक नहीं हो जाता, उसे समाजमें
१.हॉलबर्न में।
२.वेजिटेरियनके सम्पादक डा० जोशुआ ओल्डफील्ड।
३. वेजिटेरियनके एक प्रतिनिधिने गांधीजीसे अनेक प्रश्न पूछकर उनके विस्तृत उत्तर माँगे थे। उद्देश्य यह था कि इंग्लैंडके लोग उन कठिनाइयोंको समझ सकें, जो अध्ययनके लिए इंग्लैंड जानेके इच्छुक हिन्दुओंको झेलनी पड़ती हैं। दूसरा उद्देश्य उन हिन्दुओंको यह बताना भी था कि किस तरीकेसे कठिनाइयोंको पार करना सम्भव हो सकता है। उक्त प्रश्न और उत्तर यहाँ दिये जा रहे हैं।