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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रतिष्ठा नहीं मिलती। यदि कोई उसके पहले ही नौकरी करना चाहे तो उसे तबतक अच्छे वेतन और आदर-मानकी नौकरी नहीं मिलती जबतक कोई बहुत प्रभावशाली व्यक्ति उसका पृष्ठ-पोषक न हो। परन्तु मैने देखा कि स्नातक बननेके लिए मुझे कमसे-कम तीन वर्ष खर्च करने पड़ेंगे। इसके अलावा, मुझे हमेशा सिर-दर्द और नाकसे खून बहनेकी शिकायत रहा करती थी, जिसका कारण गरम आबहवा मानी जाती थी। और, आखिर, स्नातक बनकर भी तो मैं बहुत बड़ी आमदनीकी आशा नहीं कर सकता था। मैं लगातार इन चिन्ताओंमें डूबा रहने लगा। ऐसे ही अवसर पर मेरे पिताके एक पुराने मित्र मुझसे मिले और उन्होंने मुझे इंग्लैंड आने और बैरिस्टरी पास करनेकी सलाह दी। मानो, उन्होंने मेरे अन्दर सुलग रही आगको धधका दिया। मैंने मन में सोचा --"अगर इंग्लैंड चला जाऊँ तो न सिर्फ बैरिस्टर बन जाऊँगा (जिसको मैं बहुत बड़ी चीज समझता था), बल्कि दार्शनिकों और कवियोंकी भूमि, सभ्यताके साक्षात् केन्द्र-स्थल इंग्लैंडको, भी देख सकूँगा।" मेरे बुजुर्गोपर इन सज्जनका बहुत प्रभाव था, इसलिए वे मुझे इंग्लैंड भेजनेके लिए उन लोगोंको समझाने में सफल हो गये।

मेरे इंग्लैंड आनेके कारणोंका यह बहुत संक्षिप्त बयान हुआ। परन्तु यह मेरे आजके विचारोंका द्योतक नहीं है।

आपके इस महत्त्वाकांक्षाके पूर्ण प्रयत्नपर आपके सब मित्र तो खुश ही हुए होंगे?

नहीं नहीं, सब नहीं। मित्र तो अलग-अलग तरहके होते हैं। जो मेरे सच्चे मित्र और मेरी ही उम्रके थे, उन्हें यह सुनकर बहुत खुशी हुई कि मैं इंग्लैंड जानेवाला हूँ। कुछ मित्र -- या यों कहिए कि शुभाकांक्षी उम्रमें बड़े थे। उनका हादिक विश्वास यह था कि मैं अपने-आपको बरबाद करने जा रहा हूँ और इंग्लैंड जाकर मैं अपने परिवारके लिए कलंकरूप बन जाऊँगा। दूसरे लोगोंने केवल ईर्ष्या-द्वेषके कारण विरोध किया। उन्होंने कुछ ऐसे बैरिस्टरोंको देखा था, जिनकी आमदनी अपार थी। उन्हें डर था कि मैं भी वैसी ही कमाई करने लगूंगा। फिर कुछ लोग ऐसे थे जो समझते थे कि अभी मेरी उम्र बहुत छोटी है (इस समय मैं लगभग २२ वर्षका हूँ), या मैं इंग्लैंडकी आबहवाको बरदाश्त नहीं कर सकूँगा। सारांश यह कि कोई भी दो लोग ऐसे नहीं थे जिन्होंने एक ही कारणसे मेरे आनेका समर्थन या विरोध किया हो।

आपने अपने इरादोंको पूर्ण करने के लिए क्या-क्या किया। कृपया बताइए कि आपको क्या-क्या कठिनाइयाँ हुई और आपने उन्हें कैसे पार किया?

मैं आपको अपनी कठिनाइयोंकी कहानी बतानेका प्रयत्न भी करूँ तो आपका मूल्यवान पत्र पूराका पूरा भर जायेगा। वह तो एक दुःख और दर्द की कहानी है। उन कठिनाइयोंकी तुलना तो बखूबी रावण--हिन्दुओंके द्वितीय' महान कथा-ग्रंथ 'रामायण'के राक्षस-खलनायक, जिसे रामायण 'के चरितनायक रामने युद्ध करके हराया था--के


१. दूसरा महान कथा-ग्रंथ है--महाभारत ।