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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रॉपर्टी इन लैंड' के रचयिता हैं, जो बैरिस्टरीकी अन्तिम परीक्षाके लिए निर्दिष्ट पुस्तकोंमें से एक है।

आपका,

आज्ञाकारी सेवक

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महात्मा, खण्ड १; तथा एक फोटो-नकलसे।

२२. स्वदेश वापसीके मार्गमें--१

इंग्लैंडमें तीन वर्ष रहने के बाद १२ जून, १८९१ को मैं बम्बईके लिए रवाना हुआ। दिन बड़ा सुहावना था। सूर्यकी उज्ज्वल धूप फैली हुई थी। हवाके ठंडे झकोरोंसे बचनेके लिए ओवरकोटकी जरूरत नहीं थी।

पौने बारह बजे मुसाफिरोंकी एक्सप्रेस रेलगाड़ी लिवरपूल स्ट्रीट स्टेशनसे जहाज-घाटके लिए रवाना हुई।

जबतक मैं पी० ऐंड ओ० कम्पनीके जहाज 'ओशियाना' में सवार नहीं हो गया, मुझे विश्वास ही नहीं होता था कि मैं भारत जा रहा हूँ। मेरा लंदन और उसके वातावरणसे इतना अनुराग हो गया था; ऐसा कौन है, जिसे न हो जायेगा? वहाँ जो शिक्षा-संस्थाएँ, सार्वजनिक कलाभवन, अजायबघर, नाटकघर, अपार वाणिज्य, सार्वजनिक बाग और अन्नाहारी जलपान-गृह है, उनके कारण वह विद्यार्थियों, यात्रियों, व्यापारियों, और जिन्हें विरोधी लोग “खन्ती" कहकर पुकारते हैं उन अन्नाहारियोंके लिए एक योग्य स्थान है। इसलिए मैं गहरे अफसोसके बिना प्यारे लंदनसे विदाई नहीं ले सका। साथ ही मुझे खुशी भी थी कि इतने लम्बे अरसेके बाद मैं भारत पहुँचकर अपने मित्रों और संबंधियोंसे मिलूंगा।

'ओशियाना' एक आस्ट्रेलियाई जहाज है। उसकी गिनती कम्पनीके सबसे बड़े जहाजोंमें है। उसका वजन ६,१८८ टन और शक्ति १,२०० हार्सपावर है। इस तैरते हुए विशाल दीपमें सवार होनेपर हमें अच्छी, ताजगीदेह चाय और नाश्ता दिया गया, जिसपर तमाम यात्रियों और उनके मित्रोंने समान रूपसे जी भरके हाथ साफ किया। यह बता देना जरूरी है कि चाय-नाश्ता मुफ्त दिया गया था। उस समय जिस इतमीनानसे लोग चाय पी रहे थे, उसे देखकर अनजान व्यक्ति तो यही समझता कि वे सभी यात्री है (और उनकी संख्या काफी बड़ी थी)। परन्तु जब घंटी बजाकर यात्रियोंके मित्रोंको सूचना दी गई कि जहाज लंगर उठानेवाला है, तो वह संख्या बहुत-कुछ क्षीण हो गई। जब जहाज बन्दरगाहसे चला तो ढाढ़स बंधाने और उत्साहित करनेके उद्गारोंका समाँ बँध गया और जहाँ-तहाँ रूमाले लहराई जाने लगीं।