पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 1.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
स्वदेश वापसीके मार्गमें--१
५३

बम्बई जानेवाले यात्रियोंको अदनमें 'ओशियाना' छोड़कर 'आसाम' जहाजपर बैठना था। इसलिए दोनों जहाजोंका फर्क बता देना ठीक होगा। ओशियाना में हजूरिये अंग्रेज थे। वे सदा साफ-सुथरे और सेवा करनेको तत्पर रहते थे। दूसरी ओर, 'आसाम' जहाजके हजूरिये पुर्तगीज थे, जो बात-बातमें अच्छी-भली अंग्रेजीकी टाँग तोड़ते और सदैव अस्वच्छ रहते थे। वे लापरवाह और सुस्त भी थे।

इसके अलावा, दोनों जहाजोंमें दिये जानेवाले भोजनको किस्ममें भी फर्क था। 'आसाम' के यात्री जिस तरह असंतोष प्रकट करते रहते थे, उससे यह साफ था। और यही बस नहीं था। 'ओशियाना' में 'आसाम' की अपेक्षा जगह भी अच्छी थी। परन्तु इसका तो कोई इलाज कंपनीके पास नहीं था। अंग्रेजोंका जहाज अच्छा है, इसलिए अपने जहाजको वह फेंक तो नहीं दे सकती थी।

अन्नाहारियोंने जहाजमें कैसे काम चलाया, यह सवाल मौजूं होगा।

अन्नाहारी तो मुझे मिलाकर सिर्फ दो ही थे। हम दोनों अगर कुछ बेहतर न मिले तो उबले हुए आलू, गोभी और मक्खनसे काम चला लेनेको तैयार थे। परन्तु हमें उस हदतक जानेकी जरूरत नहीं पड़ी। भला परिचारक [स्टयूअर्ड ] हमें शाक-सब्जी, चावल, भापमें पकाये हुए और ताजे फल पहले दर्जेके भोजन-गृहसे लाकर दे देता था। और बड़ी बात तो यह है कि वह हमें ब्राउन ब्रेड' भी दे देता था। इस तरह, जो भी जरूरी था, सब-कुछ हमें मिल जाता था। इसमें कोई शक नहीं कि मुसाफिरोंको भोजन देने में जहाजके लोग बड़े उदार होते हैं। बात इतनी ही है कि वे अति कर देते हैं। कमसे-कम मुझे तो ऐसा ही मालूम होता है।

दूसरे दर्जेके भोजनगृहकी खाद्य-सूचीमें क्या-क्या होता है, और यात्रियोंको कितनी बार भोजन दिया जाता है, इसका वर्णन कर देना अनुचित न होगा।

पहले तो, औसत दर्जे के यात्रीको एक-दो प्याले चाय और कुछ बिस्कुट दिये जाते हैं। यह बिलकुल सुबहकी पहली चीज होती है। साढ़े आठ बजे सुबह नाश्तेकी घंटी होती है और यात्री भोजनशालामें पहुँच जाते हैं। और कुछ हो-न-हो, भोजनके समय तो वे ठीक समयका पालन करते ही हैं। नाश्तेकी सूचीमें आम तौरपर जईका दलिया, कुछ मछली, मांस, सब्जी, मुरब्बा, डबल रोटी, मक्खन, चाय या काफी आदि होती है। प्रत्येक वस्तु इच्छानुसार ली जा सकती है।

मैंने अकसर यात्रियोंको दलिया, मछली और 'करी' खाते और डबल रोटी तथा मक्खनको दो-तीन प्याले चायसे पेटमें उतारते देखा है।

हमें नाश्तेको हजम करनेका समय भी मुश्किलसे मिल पाता कि डेढ़ बजे दुपहरको फिरसे भोजनकी घंटी बज जाती थी। दुपहरका भोजन भी उतना ही अच्छा होता था, जितना कि नाश्ता। उसमें यथेष्ट मांस और शाक, चावल, सालन और रोटी आदि वस्तुएँ होती थीं। किसी चीजकी कमी दिखलाई न पड़ती। हफ्तेमें दो दिन दूसरे दर्जे के यात्रियोंको साधारण भोजनके अलावा फल आदि दिये

१. चोकरदार आटेको डबलरोटी।

२. मसालेदार मांस ।