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स्वदेश वापसीके मार्गमें-२

जरा सोचिए, उस भाषणका क्या हुआ होगा? गाने-बजानेका दूसरा कार्यक्रम हुआ ही नहीं और इस तरह वह भाषण भी कभी नहीं हुआ। इससे मुझे बहुत व्यथा हुई। मेरा खयाल है, इसका कारण यह था कि पहली शामको कार्यक्रममें कोई भी रस लेता दिखलाई नहीं पड़ा, क्योंकि हमारे दूसरे दर्जेमें पिट और ग्लैडस्टन जैसे वक्ता तो थे ही नहीं।

फिर भी, मैं दो या तीन यात्रियोंके साथ अन्नाहारपर बातचीत करने में सफल हुआ। उन्होंने मेरी बात शान्तिसे सुनी और सारांशमें यह जवाब दिया :"हमने मान लिया कि आपकी दलील सही है। परन्तु जबतक हमें अपने वर्तमान आहारमें मजा मिलता है, तबतक हम आपके आहारका प्रयोग नहीं कर सकते। (अपने आहारसे कभी-कभी हमें मन्दाग्नि हो जाती हो तो भी कोई हर्ज नहीं।)"

उनमें से एकने जब देखा कि मुझे और मेरे अन्नाहारी मित्रको रोज अच्छे-अच्छे फल मिलते हैं, तब उसने अन्नाहारका प्रयोग जरूर किया, परन्तु उसके लिए मांसका प्रलोभन बहुत बड़ा था। बेचारा!

[अंग्रेजीसे]

वेजिटेरियन, ९-४-१८९२

२३. स्वदेश वापसीके मार्गमें-२

इसके अलावा, यात्रियोंके बीच मेलजोलका भाव रहता था और पहले दर्जेके यात्री सौजन्यका व्यवहार करते थे। उदाहरणके लिए, पहले दर्जेके यात्री समय-समय पर नाटक और नाच किया करते थे और उनमें अकसर दूसरे दर्जेके यात्रियोंको आमन्त्रित किया जाता था।

पहले दर्जेमें कुछ बहुत भले स्त्री-पुरुष थे। परन्तु, बिना किसी झगड़ेके, सिर्फ खेल ही खेलमें मजा नहीं आता था, इसलिए एक शाम कुछ यात्रियोंने शराब पीकर मतवाले हो जाना पसंद किया। (क्षमा कीजिए, सम्पादकजी, वे शराब तो हर शाम ही पीते थे, मगर इस खास शामको वे पीकर आपेसे बाहर हो गये थे।) मालूम होता है, वे व्हिस्कीकी चुसकियाँ लेते हुए आपसमें बहस कर रहे थे कि उनमें से कुछ लोगोंने अनुचित शब्दोंका प्रयोग कर दिया। इसपर तू-तू मैं-मै शुरू हो गई, और बादमें लोग धूंसेबाजीपर उतर आये। आखिरकार कप्तानके पास शिकायत गई। उसने इन मुक्केबाज भद्र पुरुषोंको आड़े हाथों लिया और उसके बाद फिर कभी कोई उपद्रव नहीं हुआ।

इस तरह अपने समयको खाने-पीने और मनोरंजनमें बिताकर हम आगे बढ़ते रहे ।

दो दिनको यात्राके बाद जहाज जिब्राल्टरके पाससे निकला, मगर किनारेपर नहीं गया। हममें से कुछ लोगोंने आशाकी थी कि जहाज वहाँ रुकेगा। परन्तु जब रुका