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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं, तो खास तौरसे तम्बाकू पीनेवाले बड़े हताश हुए। उन्होंने वहाँ बिना चुंगीको सस्ती तम्बाकू खरीदनेके मंसूबै बाँध रखे थे।

इसके बाद हम माल्टा पहुँचे। वह कोयला लेनेका स्थान है, इसलिए जहाज वहाँ कोई नौ घंटेतक ठहरता है। इस बीच लगभग सभी यात्री बस्ती देखने चले गये।

माल्टा एक सुन्दर द्वीप है, जहाँ लन्दनका जैसा धुआँ छाया नहीं रहता। घरोंकी बनावट भी भिन्न है। हमने गवर्नरका महल देखा। शस्त्रागार तो देखने ही लायक है। वहाँ नेपोलियनकी गाड़ी प्रदर्शितकी गई है। कुछ सुन्दर चित्र भी देखनेको मिलते है। बाजार बुरा नहीं है। फल सस्ते हैं। गिरजाघर बड़ा भव्य है।

हम एक सवारीपर छ: मीलकी बड़ी आनन्ददायक सैर करते हुए संतरेके बाग पहुँचे। वहाँ संतरेके हजारों पेड़ थे और कुछ पानीके टाँके थे, जिनमें सुनहली मछलियाँ पली हुई थीं। सवारी बड़ी सस्ती थी--सिर्फ ढाई शिलिंग।

भिखमंगोंके कारण माल्टा कितनी रद्दी जगह बन गई है! यह हो ही नहीं सकता कि आप गन्दे दीखनेवाले भिखमंगोंकी मिन्नतोंकी झड़ियोंसे बचकर सड़कसे शान्तिपूर्वक गुजर जायें। वे एकदम पीछे पड़ जाते है। उनमें से कुछ आपके मार्ग-दर्शक बनने के लिए तैयार हो जायेंगे और दूसरे आपको चुरुट या माल्टाकी प्रसिद्ध मिठाईको दूकानोंमें ले जानेको तत्परता दिखायेंगे।

माल्टासे हम ब्रिडिसी पहुँचे। वह सिर्फ एक अच्छा बंदरगाह है। वहाँ आप एक दिन भी मनोरंजनमें गुजार नहीं सकते। हमें ९ घंटे या इससे भी ज्यादाका समय था, मगर हम चार घंटोंका भी सदुपयोग नहीं कर सके ।

ब्रिडिसीके बाद हम पोर्ट सईद पहुँचे। वहाँ हमने यूरोप और भूमध्य सागरसे अन्तिम बिदाई ली। पोर्ट सईदमें देखने लायक कुछ नहीं है। हाँ, अगर आप समाजका तलछट देखना चाहें तो बात दूसरी है। वह धूर्तों और छलियोंसे भरा हुआ है।

पोर्ट सईदसे आगे जहाज बहुत धीमे-धीमे चलता है, क्योंकि हम एम० डी'लेसेप्स-की बनाई स्वेज नहरमें प्रविष्ट हो जाते हैं। नहर सतासी मील लम्बी है। जहाजको यह फासला तय करने में चौबीस घंटे लगे। हम दोनों ओर जमीनके निकट थे। पानीका पाट इतना सँकरा है कि कुछ जगहोंको छोड़कर कहीं भी दो जहाज साथ- साथ नहीं चल सकते। रातको दृश्य बड़ा मनमोहक होता है। सब जहाजोंको सामने बिजलीका प्रकाश रखना पड़ता है। और यह प्रकाश बहुत जोरदार होता है। जब दो जहाज एक-दूसरेको पार करते हैं तब दृश्य बड़ा सुहावना होता है। सामनेके जहाजसे आनेवाला बिजलीका प्रकाश बिलकुल चौंधिया देनेवाला होता है।

रास्तेमें हमें 'गैंजेज' जहाज मिला। हमने हर्ष-ध्वनि की, जिसका उसके यात्रियोंने हृदयसे प्रत्युत्तर दिया। स्वेज शहर नहरके दूसरे सिरेपर है। जहाज वहाँ मुश्किलसे आध घंटा ठहरता है।

अब हम लाल सागरमें प्रविष्ट हुए। यह यात्रा तीन दिनकी थी, मगर अत्यन्त कष्टदायक थी। गर्मी असह्य थी। जहाजके अन्दर रहना तो असम्भव था ही, छतपर भी बेहद गर्मी थी। यहाँ पहली बार हमने महसूस किया कि हम गर्म आबहवाका सामना करनेके लिए भारत जा रहे हैं।