आधुनिक मनुष्यके बारेमें कहा है कि उसका जीवन जटिल होता है जबकि असभ्यका जीवन बिलकुल सीधा-सादा होता है । ट्रान्सवालमें एशियाइयोंके आन्दोलनका मूल कारण भी तो यही है कि एशियाइयोंकी जरूरतें बहुत सीधी-सादी हैं; और इसके विपरीत यूरोपीयोंकी जरूरतें विविध और इसी कारण खर्चीली हैं। आधुनिक तरीकोंके मोहने वतनियोंके जीवनको पहलेसे ज्यादा जटिल बना दिया है। खालिस वतनीकी जरूरतें आसानीसे पूरी हो जाती हैं; किन्तु जो वतनी अपेक्षाकृत सभ्य बन गये हैं उन्हें तो बड़ा ठाटबाट चाहिए। इस तरह उन्हें ज्यादा पैसेकी जरूरत पड़ती है और जब वे देखते हैं कि वे यह पैसा ईमानदारीसे नहीं कमा सकते तो बेईमानी करते हैं ।
इस प्रश्नपर अपने १८ वर्षके अध्ययनके बाद मैं इस नतीजेपर पहुँचा हूँ कि [ आधुनिक सभ्यताके कारण ] हालत सुधरनेके बजाय बिगड़ी ही है । (तालियाँ ) । मैंने देखा है कि सादा जीवन जटिल जीवनसे अच्छा होता है, क्योंकि उसमें ऊँची प्रवृत्तियोंके लिए समय मिल जाता है। प्राचीन सभ्यतामें भाग-दौड़ थी ही नहीं। लोग आज इहलोककी चिन्ता करते हैं; उन दिनों वे परलोककी चिन्ता रखते थे। वे अपना ध्यान शरीरपर नहीं, आत्मापर केन्द्रित करते थे। वे शरीरको आत्मासे बिलकुल पृथक् मानते थे ।
उनके लिए भोग-विलास ही सब-कुछ नहीं होता था और वह जीवनका चरम लक्ष्य भी नहीं था। अब शैतानकी सेवा की जाती है, तब ईश्वरकी सेवा की जाती थी । यदि मैं यह न मानूं कि आत्मा नित्य है और यदि मुझे हम सबमें एक ही आत्माके दर्शन न हों तो मैं तो इस संसारमें रहना ही पसन्द न करूँ। मैं मर जाना चाहूँगा । शरीर तो आत्माके नियन्त्रणमें चलनेवाला रथ-मात्र है । वह बिलकुल हेय और अपावन मिट्टीका पुतला है।
प्राचीन सभ्यतामें हमारा ध्यान जीवनकी ऊँची प्रवृत्तियों, ईश्वरके प्रति प्रेम, पड़ोसियोंके प्रति शिष्टता और आत्माके अस्तित्वकी अनुभूतिपर जाता है। जीवनमें फिरसे इन गुणोंका जितनी जल्दी समावेश हो उतना ही अच्छा होगा |
[ अंग्रेजीसे ]
रैंड डेली मेल, २७-६-१९१०