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२२४.'मर्क्युरी' में स्वामीजीका भाषण

का० आ० मण्डलने[१]हमारे जातीय गौरवमें वृद्धि करनेवाला एक भोज दिया था। उस भोजके अवसरपर स्वामीजीने[२]जो भाषण दिया उसका सारांश किसीने ['नेटाल ] मर्क्युरी' में भेजा है। 'मर्क्युरी' ने उसका शीर्षक दिया है : 'बुद्धिमत्तापूर्ण भाषण ' । परन्तु वह भाषण 'मर्क्युरी' में जिस रूपमें दिया गया है वह भारतीयोंके दृष्टिकोणसे तो ठीक नहीं है। 'मर्क्युरी' में छपे विवरणको भेजनेवाले संवाददाताने समाजकी या स्वामीजीकी कोई सेवा नहीं की है। का० आ० मण्डलके मन्त्रियोंने उस विवरणके खण्डनमें एक वक्तव्य निकाला है और उसको हमारे पास प्रकाशनार्थ भेजा है। चूंकि हमने 'मर्क्युरी' का विवरण प्रकाशित नहीं किया है, इसलिए का० आ० मण्डलका पत्र प्रकाशित करनेकी आवश्यकता नहीं रहती। किन्तु यह कहना आवश्यक है कि का० आ० मण्डलने विवरणके एक विशेष भागका ही खण्डन किया है। इसका अर्थ यह है कि उसने शेष भागको ठीक माना है। यदि हमारा यह विचार ठीक है तो वह भाग, जो समाजके लिए हानिकर है, ज्योंका-त्यों कायम रहता है। इस भाषणको जिन लोगोंने सुना है उनका कहना है कि का० आ० मण्डलने जिस भागका खण्डन नहीं किया उसमें स्वामीजीने<ref>सत्याग्रहकी आलोचना की है। अतः का० आ० मण्डलके मन्त्री इससे अधिक कुछ नहीं कह सकते, यह बात समझमें आने योग्य है। हमें दुःख है कि स्वामीजीने सत्याग्रहकी आलोचना की और कानूनके बारेमें लोगोंको [गलत ] सलाह दी। परन्तु सत्याग्रही आलोचनाके कारण सत्यको अथवा अपनी प्रतिज्ञाको छोड़ दें इसकी सम्भावना दिखाई नहीं देती।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-७-१९१०

२२५. रंग-विद्वेष

अमेरिका स्वतन्त्र देश माना जाता है। कहा जाता है कि वहाँ प्रत्येक व्यक्ति पूरी तरह स्वतन्त्र है। बहुत से लोग उसका अनुकरण करनेका प्रयत्न करते हैं। अमेरिकी उद्योग हमें चकित कर देता है। परन्तु अधिक गहराईसे सोचनेपर जान पड़ता है कि अमेरिका में हमें अनुकरणके योग्य अधिक कुछ नहीं मिल सकता। वहाँके लोग स्वार्थ और सम्पत्तिके पुजारी हैं। वे पैसेके लिए चाहे जैसा निकृष्ट काम कर डालते हैं। यह बात हम कुछ समय पहले डॉक्टर कुकके सम्बन्धमें देख चुके हैं।



  1. काठियावाद आर्य मण्डल; डर्बनमें सौराष्ट्रके आर्य समाजियोंकी एक संस्था ।
  2. स्वामी शंकरानन्द; एक हिन्दु धर्म प्रचारक, जो १९०८ से १९१० तक दक्षिण आफ्रिकामें रहे थे।