पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/३५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३११
पत्र: मगनलाल गांधीको

उपहार

श्री हाजी हबीबने तीन कम्बल और एक दर्जन तौलिए, श्री करोदियाने एक दर्जन कुछ कटे हुए कम्बल, नौ बेलन और नौ चकले, जमिस्टनवासी श्री देसाईने केले, सन्तरे और अनन्नासकी एक पेटी और श्री बी० पी० इब्राहीमने लकड़ीके बड़े-बड़े दो बक्से भेजे हैं। इसी प्रकार दूसरे सज्जन भी फार्मको सहायता दें तो बहुत अच्छा हो । फार्ममें केवल ट्रान्सवाल अथवा जोहानिसबर्गके ही नहीं बल्कि दक्षिण आफ्रिकाके सभी भागोंके भारतीय भाई कपड़ा, लकड़ीका सामान या खाद्य सामग्री भेज सकते हैं। डर्बनके फल और साग-सब्जीके व्यापारी फल, साग-सब्जियाँ और बजाज लोग कपड़ा भेज सकते हैं। अब तो चुंगी नहीं है, अतः रेल-भाड़ा लगभग नहीं के बराबर है। बरते हुए कोट, पतलून और इस प्रकारका अन्य सामान भी काममें लाया जा सकता है। मुझे उम्मीद है कि इन पंक्तियोंको पढ़कर प्रत्येक भारतीय यथाशक्ति सहायता देगा। ऐसी सहायता लड़ाईमें योग देनेके बराबर समझी जायेगी ।

अन्य उपहार

श्री सी० पी० लच्छीरामने कमीजें, रूमाल, गिलाफ आदि इकतीस चीजें भेंटमें भेजी हैं। इनमें से कुछ चीजें बहुत बढ़िया है; सत्याग्रही इनका उपयोग नहीं कर सकते। इन चीजोंको बेच देनेका इरादा है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन ९-७-१९१०

२३१. पत्र : मगनलाल गांधीको

[टॉल्स्टॉय फार्म ]
सुदी ७ [जुलाई १३, १९१० ]

चि० मगनलाल,

मैंने तुम्हारी चिट्ठी और टिप्पणी तथा ठक्करकी आलोचना पढ़ ली। ठक्करकी आलोचना निर्दोष मालूम होती है। वह तुम्हारी आलोचनासे अच्छी है । अन्तिम वाक्य- का अर्थ तुम उलटा लगा रहे हो । हे ने जो व्यंग्य किया है, वह भारतीय समाजके लिए लज्जाजनक है, ऐसा कहकर सम्पादक समाजको जागृत करता है । वही वाक्य

१. जी० ए० हे के लेखका सार, जिसका उल्लेख इस पत्रके पहले अनुच्छेदमें है, इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९१० के गुजराती विभागमें प्रकाशित किया गया था । आषाढ़ सुदी ७, उस वर्ष जुलाई १३ को पड़ी थी ।

२. ट्रान्सवालकी पुरानी संसदके सदस्य जी० ए० हे भारत आये थे, और यहाँ उन्होंने जहाजपर अपने साथ सफर करनेवाले भारतीयोंके फूहड़पनकी आलोचना करते हुए इस बातके लिए उन्हें आड़े हाथों लिया था कि वे फिर ट्रान्सवाल सरकारसे जेलोंमें सुधार करनेकी माँग कैसे करते हैं ! Gandhi Heritage Portal