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२३५. प्रशासकसे शिष्टमण्डलकी भेंट

प्रशासक (एडमिनिस्ट्रेटर) से शिष्टमण्डलकी' भेंटके सम्बन्ध में हम दो रुख अपना सकते हैं। एक तो यह कि कांग्रेसकी अनुमतिके बिना अलगसे शिष्टमण्डल ले जाना उचित नहीं था। यह बात एक हद तक ठीक है। किन्तु हम अब उसी विचारपर अड़े नहीं रह सकते। समाजके पंख लग गये हैं और भारतीय स्वतन्त्र विचार करने लगे हैं। उनसे अनेक बार भूल भी हो जाती है किन्तु वे अपने पाँवों चलना चाहते हैं। हम उनके इस उत्साहको रोक नहीं सकते। हाँ, उसे सही रास्तेपर जरूर ले जा सकते हैं। इसमें नेताओंको धीरज रखना चाहिए। यदि नेतागण युवक भारतीयोंको प्रोत्साहन दें तो इस प्रकारके उत्साहसे लाभ ही होगा। यदि उन्होंने सतर्कता नहीं बरती और युवक बुरे रास्ते चले गये तो यह साफ है कि इससे हानि होगी ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-७-१९१०

२३६. पत्र: जी० ए० नटेसनको

जोहानिसबर्ग
जुलाई २१, १९१०

प्रिय श्री नटेसन,

मैं आपके पिछले महीनेकी २ तारीखके पत्रके लिए और उसमें व्यक्त उद्गारोंके लिए आपका बहुत कृतज्ञ हूँ । जो वीर सत्याग्रही भारतको निर्वासित किये गये हैं, उन्हें आप अपना तमिल देशभाई कहते हैं। परन्तु जैसे वे आपके देशभाई हैं वैसे ही मैं उन्हें अपना देशभाई मानता हूँ। यहाँ हमने जो-कुछ काम किया है उसकी प्रेरणा हमें भारतके महान नेताओंसे मिली है। इसलिए, मैं ऐसा नहीं समझता कि दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहियोंके गुणोंको बढ़ा-चढ़ाकर कहनेकी जरूरत है। आपने जो खासी रकम दानमें भेजी थी उससे बड़ा हर्ष हुआ। आपने जो विवरण भेजनेका वादा किया है, मैं उसकी प्रतीक्षा करूंगा । आपने श्री पोलककी जो प्रशंसा की है, वे निःसन्देह

१. जुलाईके शुरूमें मैरित्सबर्ग और डर्बनकी भारतीय संस्थाओंने प्रान्तीय प्रशासकके पास एक शिष्ट- मण्डल भेजा था और व्यक्ति-कर, शैक्षणिक सुविधाओं और व्यापारिक परवानों आदिसे सम्बन्धित शिकायतें दूर करवानेका प्रयत्न किया था । Gandhi Heritage Portal