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असभ्य कौन ?

उसके योग्य हैं। वे अत्यन्त अद्भुत व्यक्ति हैं। हमारे संघर्षके प्रति उनकी निष्ठा सराहनीय है। मैं बताना चाहता हूँ कि उनके जो पत्र मुझे मिलते हैं लगभग सभीमें आप वहाँ जो काम कर रहे हैं उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा रहती है ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

गांधीजीके हस्ताक्षरोंसे युक्त टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी० एन० २२२२) से।

२३७. असभ्य कौन ?

अमेरिकामें एक हब्शी और एक अंग्रेजमें घूंसेबाजीका मैच हुआ था। उसका विवरण हम दे चुके हैं। इस तमाशेको देखनेके लिए लाखों लोग गये थे। उनमें बूढ़े- जवान, औरत-मर्द, अमीर-गरीब और सरकारी अधिकारी तथा जनसाधारण, सभी थे । बहुत-से तो यूरोपसे भी देखने गये थे। उन लोगोंने क्या देखा ? दो मनुष्य एक-दूसरे- पर प्रहार कर रहे थे और अपना पशुबल दिखा रहे थे। इस तमाशेके पीछे अमरीकी लोग पागल हो गये; और अमरीका बहुत सभ्य देश माना जाता है। इस तमाशेसे तमाशबीनोंका क्या फायदा हुआ ? इस प्रश्नका सन्तोषप्रद उत्तर हम तो नहीं दे सकते । कुछ लोग कहते हैं कि ऐसे खेलोंसे शरीर सुदृढ़ होता है और मनुष्य शरीरकी रक्षा करना सीखता है। हम कुछ गहराईसे सोचें तो देख सकते हैं कि यह खयाल बिलकुल गलत है । शरीरको सुदृढ़ बनाना अच्छी चीज है, परन्तु वह घूंसेबाजी और उसके प्रदर्शनसे सुदृढ़ नहीं बनाया जा सकता। शरीरको बलवान बनानेके कई अन्य प्राकृतिक उपाय हैं । यह तो केवल बहाना है। वास्तविक बात तो यह है कि लोगोंको लड़ाई देखनेमें रस आता है और वे शरीरबलकी ही पूजा करते हैं। वे मानते हैं कि उसके बराबर कोई दूसरी चीज नहीं है; और ऐसा मानकर वे आत्माके और इसीलिए ईश्वरके भी, अस्तित्वसे इनकार करते हैं। ऐसे लोगोंके लिए 'बर्बर' के अतिरिक्त अन्य कोई विशेषण प्रयुक्त नहीं किया जा सकता । ऐसे लोगोंसे सीखने लायक कम ही होता है। हम यह नहीं कहना चाहते कि प्राचीन कालमें ऐसे खेल नहीं होते थे, परन्तु सभी लोग उन खेलोंको बर्बरता समझते थे । समझदार लोग उनको देखने नहीं आते थे। उनमें केवल लड़के और मूर्ख युवक ही शामिल होते थे। परन्तु अमरीकी तमाशेमें तो सयाने माने जानेवाले लोग गये थे। तार द्वारा समाचारपत्रोंमें सैकड़ों पौंड खर्च करके लम्बे-लम्बे विवरण भेजे गये । लाखों लोगोंने दिलचस्पीसे इन्हें पढ़ा । इसका अर्थ यह हुआ कि यह तमाशा सभ्यताके विरुद्ध नहीं माना गया, बल्कि इसे सभ्यताका एक चिह्न समझा गया। इसे हम जंगलीपनकी हद मानते हैं। जेफरीज़

१. जेफरीज़ और जॉनसनके बीच घूँसेबाजी जो रेनोमें जुलाई ४, १९१० को हुई । Gandhi Heritage Portall