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एक और विश्वासघात

श्री कैलेनबैक कहते हैं कि यदि वेरुलमसे पौधे एक सप्ताह में न आयें तो सौदा रद कर देना । यदि यह सौदा रद हो जाये तो चिन्ताकी कोई बात नहीं। इसलिए तुम्हें इस सम्बन्धमें परेशान नहीं होना चाहिए। यदि पौधे एक सप्ताहमें भेज भी दिये जायें तो भी कैलेनबैकका कहना है कि जब वे यहाँ पहुँच जायें तभी उनका मूल्य चुकाया जाये । आशा है, सन्तोक और उसकी लड़की सानन्द होंगे।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ४९३३) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी ।

२४२. एक और विश्वासघात

ट्रान्सवाल सरकारकी नई चालके बारेमें वहाँके हमारे संवाददातान जो समाचार भेजा है वह सचमुच हैरतमें डालनेवाला है। पाठकोंको याद होगा कि सन् १९०७ के एशियाई कानूनमें एक बहुत चुभनेवाली बात यह थी कि उसके अन्तर्गत सोलह सालसे कम उम्रके नाबालिगोंका स्वतन्त्र पंजीयन कराना जरूरी था । यह शिकायत सन् १९०८ के कानून द्वारा ऐसे बच्चोंको उनके माता-पिताओंके प्रमाणपत्रोंमें पंजीकृत करनेकी व्यवस्था करके दूर कर दी गई थी। और अगर अन्य सब बातें ठीक हुई होतीं तो ट्रान्सवालमें नाबालिग बच्चोंके पंजीयनके बारेमें इसके बाद कोई शिकायत सुनाई न पड़ती। ऐसा दिखता है कि अभी हालतक उन लोगोंके नाबालिग बच्चे जो सत्याग्रहसे अलग थे, बालिग होनेपर पंजीकृत कर लिए जाते थे; फिर चाहे वे बच्चे १९०८ के अधिनियमके अमलमें आनेसे पहले उपनिवेशमें आये हों या बादमें। परन्तु मालूम होता है कि एशियाई विभागका काम भारतीयोंको सताना और तंग करके उपनिवेशसे चले जानेके लिए मजबूर करनेका उपाय ढूंढ़ना मात्र है। इसलिए किसी कानूनदाँ अधिकारीने यह पता लगाया है कि सन् १९०८ के अधिनियममें, जो कि एक ही दिनमें तैयार किया गया था, एक दोष रह गया है। इस दोषका आश्रय लेकर सरकार अधिनियम लागू होनेके बाद वैधरूपसे आनेवाले नाबालिग बच्चोंको बालिग हो जानेपर निषिद्ध प्रवासी मान सकती है। यह स्पष्ट है कि विधान-मण्डलका मंशा यह कभी नहीं था । भारतीय माता-पिता ऐसी व्यवस्थाको कभी मंजूर नहीं कर सकते जिसके अनुसार उनके बच्चे सोलह बरसके होनेपर ट्रान्सवालसे निकाल दिये जायें । सन् १९०८ का अधिनियम बहुत हद तक समझौतेका परिणाम था । जिस समझौता वार्ताके परिणामस्वरूप यह अधिनियम बना था उसका इतिहास स्पष्ट रूपसे प्रकट करता है कि सरकार और एशियाई लोग, दोनों ही यह बात साफ तौरपर समझते थे कि पंजीकृत एशियाइयोंको जो अधिकार प्राप्त हैं, वे अधिकार उनके नाबालिग बच्चोंको भी होंगे। अधिनियमका सही अर्थ क्या है, हमें नहीं मालूम; न हमें उसकी कोई परवाह ही है। इस अधिनियमका कानूनी असर कुछ भी क्यों न हो हम इतना जरूर जानते हैं कि ट्रान्सवाल सरकारकी Gandhi Heritage Portal