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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सार्वजनिक रूपसे नहीं उठाया गया था। और जब उठाया गया तब केवल इसलिए कि समाजकी मांगोंको सरकार द्वारा ठुकराये जानेके अन्यायका पर्दाफाश हो। इन माँगोंमें, जैसा कि श्री पैट्रिक डंकनने बताया है, कभी परिवर्तन नहीं किया गया। प्रवासके बारेमें ब्रिटिश भारतीयोंकी माँग सदा यही रही है कि कानूनकी दृष्टिमें सबके साथ समानताका व्यवहार हो। उन्होंने एशियाइयोंका अनियन्त्रित आव्रजन कभी नहीं चाहा।' मैं दृढ़तापूर्वक इस कथनका खण्डन करता हूँ कि निर्वासित भारतीयोंमें से बहुत से लोगोंने अपने दक्षिण आफ्रिकाके निवासी होनेके बारेमें जानकारी देनेसे इनकार किया था। सच तो यह है कि एशियाई विभाग स्वयं जानता था कि निर्वासितोंमें से अधिकांश दक्षिण आफ्रिका में अधिवासका अधिकार प्राप्त कर चुके हैं। फिर, जिनमें शैक्षणिक योग्यता थी, उनके लिए तो इस प्रकारके प्रमाणकी जरूरत ही नहीं थी। और ऐसे बहुत से लोग थे । आप यह भी लिखते हैं कि सत्याग्रही ऐसा एक भी मामला सिद्ध नहीं कर सके जिससे मालूम हो कि उनके साथ ट्रान्सवालकी जेलोंमें कठोर व्यवहार हुआ है। मैं आपको और जनताको बताना चाहता हूँ कि खूराकका प्रश्न, जो एक गम्भीर प्रश्न था, सरकार और जनताके सामने बहुत उभारकर पेश किया गया था। मैं सवन्यवाद निवेदन करता हूँ कि यह शिकायत अब कहीं थोड़ी-बहुत रफा की गई है। साधारण अर्थमें सत्याग्रही अपराधी नहीं कहे जा सकते। उन्हें डीपक्लूफ जैसे गुनहगारोंके लिए बनाये गये जेलमें भेजा गया है जहाँ कैदियोंको दी जानेवाली मामूली सहूलियतें भी नहीं दी जातीं। मेरी रायमें यह निःसन्देह कठोर व्यवहारका ज्वलन्त उदाहरण है। आप आगे लिखते हैं कि ब्रिटिश भारतीय अपनी वाजिब मागोंको पूरा करानेके लिए नहीं बल्कि किसी दूसरे इरादे से सत्याग्रह जारी रखे हुए हैं। इसके जवाबमें मैं तो केवल इतना ही कह सकता हूँ कि संसारमें बहुत ही कम लोग होंगे जो किसी समुचित कारणके बिना ही अपनी जमीन-जायदादसे हाथ धो बैठनेके साथ-साथ दारिद्रय, अनाहार और अपने प्रियजनोंका वियोग आदि सहनेको तैयार हों। मैं इस बातमें आपसे पूरी तरह सहमत हूँ कि हमारे समाजकी माँगें सत्याग्रहके कारण नहीं बल्कि इसलिए मंजूर की जानी चाहिए कि वे मूलत: न्याय्य हैं। परन्तु मैं आशा करता हूँ कि आप इस बातसे सहमत होंगे कि सत्याग्रहको एक शक्तिशाली सरकारके न्याय करनेके मार्गमें रोड़ा नहीं होना चाहिए । आपका शायद यह खयाल है कि सत्याग्रह एक जबरदस्ती है। परन्तु मेरी नम्र रायमें समाजने सत्याग्रह नामक कष्ट-सहन तभी अंगीकार किया है जब प्रार्थनापत्र आदि सभी उपाय विफल हो चुके थे। और इसका मंशा यह था कि समाज जिस व्यथासे व्यथित और क्षुब्ध था उसकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित किया जाये ।

आपका
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
रेंड डेली मेल, ६-८-१९१०
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९१०

१. देखिए अगला शीर्षक ।